वंश चरित्र


भाग-१(1) स्वयंभू मनु और शतरूपा की उत्पत्ति तथा ध्रुव की कथा

भाग-२(2) ध्रुव का वन गमन तथा नारदजी का उसे उपदेश

भाग-३(3) नारदजी का उत्तानपाद से मिलकर ध्रुव की तपस्या का समाचार देना तथा देवताओं का तपस्या भंग करने का विफल प्रयास करना

भाग-४(4) ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न हुए भगवान का आविर्भाव और उसे ध्रुवपद – दान

भाग-५(5) ध्रुव का घर लौटना तथा पिता उत्तानपाद द्वारा उनका भव्य स्वागत करना

भाग-६(6) उत्तम का मारा जाना, ध्रुव का यक्षों के साथ युद्ध

भाग-७(7) स्वायम्भुव-मनु का ध्रुव जी को युद्ध बंद करने के लिये समझाना

भाग-८(8) ध्रुव जी को कुबेर का वरदान और विष्णुलोक की प्राप्ति

भाग-९(9) मनु-शतरूपा तप एवं वरदान प्राप्ति

भाग-१०(10) कामदेव, देवी रति तथा संध्या की उत्पत्ति

भाग-११(11) देवी संध्या की तपस्या, आत्माहुति और पुनर्जन्म तथा महर्षि वशिष्ठ से विवाह 

भाग-१२(12) सूतजी द्वारा मन्वन्तरों का वर्णन

भाग-१३(13) भगवान के मत्स्यावतार की कथा

भाग-१४(14) वैवस्वत मनु के पुत्र राजा सुद्युम्न की कथा

भाग-१५(15) पृषध्र आदि मनु के पाँच पुत्रों का वंश

भाग-१६(16) महर्षि च्यवन और सुकन्या का चरित्र, राजा शर्याति का वंश

भाग-१७(17) नाभाग और अम्बरीष की कथा

भाग-१८(18) दुर्वासा ऋषि का अम्बरीष पर क्रोध कर उसे मारने का प्रयास करना तथा सुदर्शन चक्र से अम्बरीष की रक्षा 

भाग-१९(19) दुर्वासा जी की दुःख निवृत्ति

भाग-२०(20) इक्ष्वाकु के वंश का वर्णन, मान्धाता के जन्म की कथा 

भाग-२१(21) मान्धाता और सौभरि ऋषि की कथा

भाग-२२(22) मान्धाता की संतानों का वर्णन तथा राजा विश्वरथ के जन्म की कथा

भाग-२३(23) विश्वरथ का मुनि वशिष्ठ से नंदिनी गौ के लिए युद्ध करना 

भाग-२४(24) विश्वामित्र द्वारा गायत्री मंत्र की रचना तथा राजा सत्यव्रत को मिला त्रिशंकु बनने का श्राप

भाग-२५(25) विश्वामित्र के यज्ञ की आहुति को देवताओं द्वारा ठुकराना तथा क्रोधित मुनि का माता गायत्री को शाप देना 

भाग-२६(26) विश्वामित्र के द्वारा त्रिशंकु के स्वर्ग का निर्माण तथा इंद्र द्वारा भेजी गयी अप्सरा रम्भा को मिला शिला बनने का शाप  

भाग-२७(27) मेनका के द्वारा विश्वामित्र का तप भंग और दोनों का विवाह तथा राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा

भाग-२८ (28) राजा दुष्यंत और शकुंतला का पुनर्मिलन

भाग-२९(29) विश्वामित्र के कहने पर राजा हरिश्चंद्र का राज्य त्याग 

भाग-३०(30) विश्वामित्र द्वारा हरिश्चंद्र की कठिन परीक्षा

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