भाग-१०(10) कामदेव, देवी रति तथा संध्या की उत्पत्ति

 


सूतजी कहते हैं - हे ऋषियों ! अब मैं आप सब को वह प्रसंग सुनाता हूँ जो भगवान राम के वंश में कुलगुरु रहे वशिष्ठजी की जीवन गाथा से सम्बन्ध रखता है। अतः इसे ध्यान से सुनें। ब्रह्माजी ने सृष्टिकर्ता होने के नाते सभी जातियों का निर्माण किया। उन्होंने ही मरीच, अत्रि, पुलह, पुलस्त्य, अंगिरा, क्रतु, वशिष्ठ, नारद, दक्ष और भृगु की उत्पत्ति की और ये सभी उनके मानस पुत्र कहलाए । 

'तत्पश्चात, ब्रह्माजी के मन में माया का मोह उत्पन्न होने लगा। तब उनके हृदय से अत्यंत मनोहारी और सुंदर रूप वाली नारी प्रकट हुई। उसका नाम संध्या था। वह दिन में क्षीण होती, परंतु रात में उसका रूप-सौंदर्य और निखर जाता था। वह सायं संध्या ही थी। संध्या निरंतर मंत्र का जाप करती थी। उसके सौंदर्य से ऋषि-मुनियों का मन भी भ्रमित हो जाता था।

'इसी प्रकार ब्रह्माजी के मन से एक मनोहर रूप वाला पुरुष भी प्रकट हुआ। वह अत्यंत सुंदर और अद्भुत रूप वाला था। उसके शरीर का मध्य भाग पतला था। वह काले बालों से युक्त था। उसके दांत सफेद मोतियों से चमक रहे थे। उसके श्वास से सुगंधि निकल रही थी। उसकी चाल मदमस्त हाथी के समान थी। उसकी आंखें कमल के समान थीं। उसके अंगों में लगे केसर की सुगंध नासिका को तृप्त कर रही थी। तभी उस रूपवान पुरुष ने विनयपूर्वक अपने सिर को ब्रह्माजी के सामने झुकाकर, उन्हें प्रणाम किया और उनकी बहुत स्तुति की।'

वह पुरुष बोला - ब्रह्मान्! आप अत्यंत शक्तिशाली हैं। आपने ही मेरी उत्पत्ति की है। प्रभु मुझ पर कृपा करें और मेरे योग्य कार्य मुझे बताएं ताकि मैं आपकी आज्ञा से उस कार्य को पूरा कर सकूं।

ब्रह्माजी ने कहा - हे भद्रपुरुष! तुम सनातनी सृष्टि उत्पन्न करो। तुम अपने इसी स्वरूप में फूल के पांच बाणों से स्त्रियों और पुरुषों को मोहित करो। इस चराचर जगत में कोई भी जीव तुम्हारा तिरस्कार नहीं कर पाएगा। तुम छिपकर प्राणियों के हृदय में प्रवेश करके सुख का हेतु बनकर सृष्टि का सनातन कार्य आगे बढ़ाओगे। तुम्हारे पुष्पमय बाण समस्त प्राणियों को भेदकर उन्हें मदमस्त करेंगे। आज से तुम 'पुष्प बाण' नाम से जाने जाओगे। इसी प्रकार तुम सृष्टि के प्रवर्तक के रूप में जाने जाओगे।

सूतजी कहते हैं - हे मुनिवरों! सभी ऋषि-मुनि उस पुरुष के लिए उचित नाम खोजने लगे। तब सोच-विचारकर वे बोले कि तुमने उत्पन्न होते ही ब्रह्मा का मन मंथन कर दिया है। अतः तुम्हारा पहला नाम मन्मथ होगा। तुम्हारे जैसा इस संसार में कोई नहीं है इसलिए तुम्हारा दूसरा नाम काम होगा। तीसरा नाम मदन और चौथा नाम कंदर्प होगा। अपने नामों के विषय में जानते ही काम ने अपने पांच बाणों का नामकरण कर उनका परीक्षण किया। 

'काम ने अपने पांच बाणों को हर्षण, रोचन, मोहन, शोषण और मारण नाम से सुशोभित किया। ये बाण ऋषि-मुनियों को भी मोहित कर सकते थे। उस स्थान पर बहुत से देवता व ऋषि उपस्थित थे। उस समय संध्या भी वहीं थी। कामदेव द्वारा चलाए गए बाणों के फलस्वरूप सभी मोहित हो गए। सबके मनों में विकार आ गया। सभी काम के वशीभूत हो चुके थे। प्रजापति, मरीचि, अत्रि, दक्ष आदि सब मुनियों के साथ-साथ ब्रह्माजी भी काम के वश में होकर संध्या को पाने की इच्छा करने लगे। ब्रह्माजी व उनके मानस पुत्रों, सभी को एक कन्या पर मोहित होते देखकर धर्म को बहुत दुख हुआ। धर्म ने धर्मरक्षक त्रिलोकीनाथ का स्मरण किया।' 

तब सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी को देखकर शिवजी हंसे और कहने लगे- हे ब्रह्मा ! अपनी पुत्री के ही प्रति तुम मोहित कैसे हो गए? सूर्य का दर्शन करने वाले दक्ष, मरीचि आदि योगियों का निर्मल मन कैसे स्त्री को देखते ही मलिन हो गया? जिन देवताओं का मन स्त्री के प्रति आसक्त हो, उनके साथ शास्त्र संगति किस प्रकार की जा सकती है?

'इस प्रकार के शिव वचन सुनकर ब्रह्माजी को बहुत लज्जा का अनुभव हुआ और उनका पूरा शरीर पसीने-पसीने हो गया। ब्रह्माजी का विकार समाप्त हो गया परंतु उनके शरीर से जो पसीना नीचे गिरा उससे पितृगणों की उत्पत्ति हुई। उससे चौंसठ हजार आग्नेष्वातो पितृगण उत्पन्न हुए और छियासी हजार बहिर्षद पितर हुए। एक सर्व गुण संपन्न, अति सुंदर कन्या भी उत्पन्न हुई, जिसका नाम रति था। उसका रूप-सौंदर्य देखकर ऋतु आदि स्खलित हो गए एवं उससे अनेक पितरों की उत्पत्ति हुई। इस प्रकार संध्या से बहुत से पितरों की उत्पत्ति हुई।'

'शिवजी के वहां से अंतर्धान होने पर ब्रह्माजी काम पर क्रोधित हो गये। उनके क्रुद्ध होने पर काम ने वह बाण वापस खींच लिया। बाण के निकलते ही परमपिता ब्रह्माजी क्रोध की अग्नि से जलने लगे। उन्होंने काम को शिव बाण से भस्म होने का शाप दे डाला। यह सुनकर काम और रति दोनों उनके चरणों में गिर पड़े और स्तुति करने लगे तथा क्षमा याचना करने लगे।'

तब काम ने कहा - हे प्रभु! आपने ही तो मुझे वर देते हुए कहा था कि ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र समेत सभी देवता, ऋषि-मुनि और मनुष्य तुम्हारे वश में होंगे। मैं तो सिर्फ अपनी उस शक्ति का परीक्षण कर रहा था। इसलिए मैं निरपराध हूं। प्रभु मुझ पर कृपा करें। इस शाप के प्रभाव को समाप्त करने का उपाय बताएं।

'इस प्रकार काम के वचनों को सुनकर ब्रह्माजी का क्रोध शांत हुआ। तब उन्होंने कहा कि मेरा शाप झूठा नहीं हो सकता। इसलिए तुम महादेव के तीसरे नेत्र रूपी अग्नि बाण से भस्म हो जाओगे। परंतु कुछ समय पश्चात जब शिवजी विवाह करेंगे अर्थात उनके जीवन में देवी पार्वती आएंगी, तब तुम्हारा शरीर तुम्हें पुनः प्राप्त हो जाएगा। हे मुनिजनों! कामदेव के शिवजी द्वारा भस्म होने का प्रसंग मैं आपको पहले ही सुना चूका हूँ। 

शिवजी के वहां से अंतर्धान हो जाने पर दक्ष ने काम से कहा - कामदेव! आपके ही समान गुणों वाली परम सुंदरी एवं सुशीला मेरी कन्या को तुम पत्नी के रूप में स्वीकार करो । मेरी पुत्री सर्वगुण संपन्न है तथा हर प्रकार से आपके लिए सुयोग्य है । हे महातेजस्वी मनोभव! यह हमेशा तुम्हारे साथ रहेगी और तुम्हारी इच्छानुसार कार्य करेगी। 

'यह कहकर दक्ष ने अपनी कन्या, जो उनके पसीने से उत्पन्न हुई थी, का नाम 'रति' रख दिया। तत्पश्चात कामदेव और रति का विवाह सोल्लास संपन्न हुआ। दक्ष की पुत्री रति बड़ी रमणीय और परम सुंदरी थी। उसका रूप लावण्य मुनियों को भी मोह लेने वाला था। रति से विवाह होने पर कामदेव अत्यंत प्रसन्न हुए। वे रति पर पूर्ण मोहित थे। उनके विवाह पर बहुत बड़ा उत्सव हुआ। प्रजापति दक्ष पुत्री के लिए सुयोग्य वर पाकर बहुत खुश थे। दक्षकन्या देवी रति भी कामदेव को पाकर धन्य हो गई थी। जिस प्रकार बादलों में बिजली शोभा पाती है, उसी प्रकार कामदेव के साथ रति शोभा पा रही थी। कामदेव ने रति को अपने हृदय सिंहासन में बैठाया तो रति भी कामदेव को पाकर उसी प्रकार प्रसन्न हुई, जिस प्रकार श्रीहरि को पाकर देवी लक्ष्मी। उस समय आनंद और खुशी से सराबोर कामदेव व रति ब्रह्माजी का शाप भूल गए।

इति श्रीमद् राम कथा वंश चरित्र अध्याय-२ का भाग-१०(10) समाप्त !

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