भाग-१२(12) सूतजी द्वारा मन्वन्तरों का वर्णन

 


सूतजी कहते हैं - हे ऋषियों ! एक बार ब्रह्माजी ने मुनि वशिष्ठ से आग्रह किया कि वे वैवस्त मनु के वंश (इक्ष्वाकु वंश) के पुरोहित (कुलगुरु) बनना स्वीकार करें। किन्तु उस समय मुनि वशिष्ठजी ने ब्रह्माजी से निवेदन किया - हे पिताश्री ! मुझे किसी भी राजवंश का पुरोहित बनने में कोई रूचि नहीं है। तब परमपिता ने उन्हें यह कहते हुए मनाया कि मैं तुम्हे जिस राजवंश का पुरोहित बना रहा हूँ, उसी वंश में त्रेता युग के अंतिम समय में श्रीनारायण अवतार लेंगे। तब मुनि वशिष्ठ बहुत प्रसन्न हुए तथा उन्होंने इक्ष्वाकु वंश का पुरोहित बनना स्वीकार किया। हे ऋषियों! अब मैं आप सभी को उसी इक्ष्वाकु वंश के चरित्र का विस्तार से वर्णन करता हूँ।   

हे ऋषियों मैं जिस वंश का वर्णन करने जा रहा हूँ उसका वर्णन संक्षेप से सुनो। विस्तार से तो सैकड़ों वर्ष में भी उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। इस कल्प में स्वायम्भुव आदि छः मन्वन्तर बीत चुके हैं। उनमें से पहले मन्वन्तर का मैंने वर्णन कर दिया, उसी में देवता आदि की उत्पत्ति हुई थी। 

'स्वयंभू मनु के पश्चात दूसरे मनु हुए स्वारोचिष। वे अग्नि के पुत्र थे। उनके पुत्रों के नाम थे-द्युमान्, सुषेण और रोचिष्मान् आदि। उस मन्वन्तर में इन्द्र का नाम था रोचन, प्रधान देवगण थे तुषित आदि। ऊर्जास्तम्भ आदि वेदवादीगण सप्तर्षि थे। उस मन्वन्तर में वेदशिरा नाम के ऋषि की पत्नी तुषिता थीं। उनके गर्भ से भगवान ने अवतार ग्रहण किया और विभु नाम से प्रसिद्ध हुए। वे आजीवन नैष्ठिक ब्रह्मचारी रहे। उन्हीं के आचरण से शिक्षा ग्रहण करके अठासी हजार व्रतनिष्ठ ऋषियों ने भी ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया।'

'तीसरे मनु थे उत्तम। वे प्रियव्रत के पुत्र थे। उनके पुत्रों के नाम थे-पवन, सृंजय, यज्ञहोत्र आदि। उस मन्वन्तर में वसिष्ठ जी के प्रमद आदि सात पुत्र सप्तर्षि थे। सत्य, वेदश्रुत और भद्र नामक देवताओं के प्रधान गण थे और इन्द्र का नाम था सत्यजित। उस समय धर्म की पत्नी सूनृता के गर्भ से पुरुषोत्तम भगवान ने सत्यसेन के नाम से अवतार ग्रहण किया था। उनके साथ सत्यव्रत नाम के देवगण भी थे। उस समय के इन्द्र सत्यजित् के सखा बनकर भगवान ने असत्यपरायण, दुःशील और दुष्ट यक्षों, राक्षसों एवं जीवद्रोही भूतगणों का संहार किया।'

'चौथे मनु का नाम था तामस। वे तीसरे मनु उत्तम के सगे भाई थे। उनके पृथु, ख्याति, नर, केतु इत्यादि दस पुत्र थे। सत्यक, हरि और वीर नामक देवताओं के प्रधान गण थे। इन्द्र का नाम था त्रिशिख। उस मन्वन्तर में ज्योतिर्धाम आदि सप्तर्षि थे। उस तामस नाम के मन्वन्तर में विधृति के पुत्र वैधृति नाम के और भी देवता हुए। उन्होंने समय के फेर से नष्टप्राय वेदों को अपनी शक्ति से बचाया था, इसीलिये ये ‘वैधृति’ कहलाये। इस मन्वन्तर में हरिमेधा ऋषि की पत्नी हरिणी के गर्भ से हरि के रूप में भगवान ने अवतार ग्रहण किया। इसी अवतार में उन्होंने ग्राह से गजेन्द्र की रक्षा की थी।'

'पाँचवें मनु का नाम था रैवत। वे चौथे मनु तामस के सगे भाई थे। उनके अर्जुन, बलि, विन्ध्य आदि कई पुत्र थे। उस मन्वन्तर में इन्द्र का नाम था विभु और भूतरय आदि देवताओं के प्रधान गण थे। परीक्षित! उस समय हिरण्यरोमा, वेदशिरा, ऊर्ध्वबाहु आदि सप्तर्षि थे। उनमें शुभ्र ऋषि की पत्नी का नाम था विकुण्ठा। उन्हीं के गर्भ से वैकुण्ठ नामक श्रेष्ठ देवताओं के साथ अपने अंश से स्वयं भगवान् ने वैकुण्ठ नामक अवतार धारण किया। उन्हीं ने लक्ष्मी देवी की प्रार्थना से उनको प्रसन्न करने के लिये वैकुण्ठधाम की रचना की थी।'

'भगवान् विष्णु के सम्पूर्ण गुणों का वर्णन तो वह करे, जिसने पृथ्वी के परमाणुओं की गिनती कर ली हो। छठे मनु चक्षु के पुत्र चाक्षुष थे। उनके पूरु, पुरुस, सुद्युम्न आदि कई पुत्र थे। इन्द्र का नाम था मन्त्रद्रुम और प्रधान देवगण थे आप्य आदि। उन मन्वन्तर में हविष्यामान् और वीरक आदि सप्तर्षि थे। जगत्पति भगवान् ने उस समय भी वैराज की पत्नी सम्भूति के गर्भ से अजित नाम का अंशावतार ग्रहण किया था। उन्होंने ही क्षीर सागर में समुद्र मन्थन करके देवताओं को अमृत पिलाया था, तथा वे ही कच्छप रूप धारण करके मन्दराचल की मथानी के आधार बने थे।'

सूतजी कहते हैं - हे शौनक! भगवान सूर्य के पुत्र यशस्वी श्राद्धदेव ही सातवें (वैवस्वत) मनु हैं। यह वर्तमान मन्वन्तर ही उनका कार्यकाल है। इन्ही मनु से भगवान राम के वंश का प्रारम्भ होता है। चूँकि वैवस्वत मनु सूर्यपुत्र थे अतः उनका वंश सूर्यवंशी कहा जाता है। उनकी सन्तान का वर्णन मैं करता हूँ। वैवस्वत मनु के दस पुत्र हैं- इक्ष्वाकु, नभग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, नाभाग, दिष्ट, करुष, पृषध्र और वसुमान। इस मन्वन्तर में आदित्य, वसु, रुद्र, विश्वेदेव, मरुद्गण, अश्विनीकुमार और ऋभु- ये देवताओं के प्रधान गण हैं और पुरन्दर उनका इन्द्र है। कश्यप, अत्रि, वसिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भरद्वाज- ये सप्तर्षि हैं। इस मन्वन्तर में भी कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से आदित्यों के छोटे भाई वामन के रूप में भगवान् विष्णु ने अवतार ग्रहण किया था।

सूतजी कहते हैं - हे ऋषिगणों ! इस प्रकार मैंने संक्षेप से तुम्हें सात मन्वन्तरों का वर्णन सुनाया; अब भगवान् की शक्ति से युक्त अगले (आने वाले) सात मन्वन्तरों का वर्णन करता हूँ। 

(नोट: यहाँ जिन सात मनुओं का वर्णन किया गया है वे वर्तमान कलियुग तक के मनु बतलाये गये हैं। अगले सात मनु वर्तमान कलियुग की समाप्ति के बाद के बताये जा रहे हैं। इसका वर्णन श्रीमद्भागवत के अष्ठम तथा नवम स्कंध में किया गया है। इसके अलावा श्रीविष्णु पुराण के तृतीया तथा चतुर्थ अंश में मिलता है। भगवान राम के वंश का वर्णन भी इन्ही में मिलता है। इसके अतिरिक्त राजा दिलीप से लेकर भगवान राम तथा लवकुश तक के चरित्रों का वर्णन महाकवि कालिदासजी द्वारा रचित रघुवंश वाग्ङमय में मिलता है। अतः श्रीमद् राम कथा वंश चरित्र अध्याय-२ में इन्ही श्रेष्ठ पुस्तकों का सहारा लिया गया है। आपसे आशा है कि इसे मन लगाकर पढ़ें।)    

'आठवें मन्वन्तर में सावर्णि मनु होंगे। उनके पुत्र होंगे निर्मोक, विरजस्क आदि। उस समय सुतपा, विरजा और अमृतप्रभ नामक देवगण होंगे। उन देवताओं के इन्द्र होंगे विरोचन के पुत्र बलि। विष्णु भगवान् ने वामन अवतार ग्रहण करके इन्हीं से तीन पग पृथ्वी माँगी थी; परन्तु इन्होंने उनको सारी त्रिलोकी दे दी। राजा बलि को एक बार तो भगवान् ने बाँध दिया था, परन्तु फिर प्रसन्न होकर उन्होंने इनको स्वर्ग से भी श्रेष्ठ सुतल लोक का राज्य दे दिया। वे इस समय वहीं इन्द्र के समान विराजमान हैं। आगे चलकर ये ही इन्द्र होंगे (वर्तमान कलियुग कि समाप्ति के पश्चात) और समस्त ऐश्वर्यों से परिपूर्ण इन्द्रपद का भी परित्याग करके परमसिद्धि प्राप्त करेंगे।'

'गालव, दीप्तिमान्, परशुराम, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, ऋष्यश्रृंग और हमारे (सूतजी के पिता) पिता भगवान् व्यास - ये आठवें मन्वन्तर में सप्तर्षि होंगे। इस समय ये लोग योग बल से अपने-अपने आश्रम मण्डल में स्थित हैं। देवगुह्य की पत्नी सरस्वती के गर्भ से सार्वभौम नामक भगवान् का अवतार होगा। ये ही प्रभु पुरन्दर इन्द्र से स्वर्ग का राज्य छीनकर राजा बलि को दे देंगे।'

हे ऋषियों! वरुण के पुत्र दक्षसावर्णि नवें मनु होंगे। भूतकेतु, दीप्तकेतु आदि उनके पुत्र होंगे। पार, मारीचिगर्भ आदि देवताओं के गण होंगे और अद्भुत नाम के इन्द्र होंगे। उस मन्वन्तर में द्युतिमान् आदि सप्तर्षि होंगे। आयुष्यमान् की पत्नी अम्बुधारा के गर्भ से ऋषभ के रूप में भगवान् का कलावतार होगा। अद्भुत नामक इन्द्र उन्हीं की दी हुई त्रिलोकी का उपभोग करेंगे।' 

दसवें मनु होंगे उपश्लोक के पुत्र ब्रह्मसावर्णि। उनमें समस्त सद्गुण निवास करेंगे। भूरिषेण आदि उनके पुत्र होंगे और हविष्यमान्, सुकृति, सत्य, जय, मूर्ति आदि सप्तर्षि। सुवासन, विरुद्ध आदि देवताओं के गण होंगे और इन्द्र होंगे शम्भु। विश्वसृज की पत्नी विषूचि के गर्भ से भगवान् विष्वक्सेन के रूप में अंशावतार ग्रहण करके शम्भु नामक इन्द्र से मित्रता करेंगे।'

'ग्यारहवें मनु होंगे अत्यन्त संयमी धर्म सावर्णि। उनके सत्य, धर्म आदि दस पुत्र होंगे। विहंगम, कामगम, निर्वाणरुचि आदि देवताओं के गण होंगे। अरुणादि सप्तर्षि होंगे वैधृत नाम के इन्द्र होंगे। आर्यक की पत्नी वैधृता के गर्भ से धर्मसेतु के रूप में भगवान् का अंशावतार होगा और उसी रूप में वे त्रिलोकी की रक्षा करेंगे।'

'बारहवें मनु होंगे रुद्र सार्वणि। उनके देववान्, उपदेव और देवश्रेष्ठ आदि पुत्र होंगे। उस मन्वन्तर में ऋतुधामा नामक इन्द्र होंगे और हरित आदि देवगण। तपोमूर्ति, तपस्वी आग्नीध्रक आदि सप्तर्षि होंगे। सत्यसहाय की पत्नी सूनृता के गर्भ से स्वधाम के रूप में भगवान् का अंशावतार होगा और उसी रूप में भगवान उस मन्वन्तर का पालन करेंगे।'

'तेरहवें मनु होंगे परम जितेन्द्रिय देवसावर्णि। चित्रसेन, विचित्र आदि उनके पुत्र होंगे। सुकर्म और सुत्राम आदि देवगण होंगे तथा इन्द्र का नाम होगा दिवस्पति। उस समय निर्मोक और तत्त्वदर्श आदि सप्तर्षि होंगे। देवहोत्र कि पत्नी बृहती के गर्भ से योगेश्वर के रूप में भगवान का अंशावतार होगा और उसी रूप में भगवान् दिवस्पति को इन्द्रपद देंगे।'

'चौदहवें मनु होंगे इन्द्र सावर्णि। उरू, गम्भीर, बुद्धि आदि उनके पुत्र होंगे। उस समय पवित्र, चाक्षुष आदि देवगण होंगे और इन्द्र का नाम होगा शुचि। अग्नि, बाहु, शुचि, शुद्ध और मागध आदि सप्तर्षि होंगे। उस समय सत्रायण की पत्नी विताना के गर्भ से बृहद्भानु के रूप में भगवान अवतार ग्रहण करेंगे तथा कर्मकाण्ड का विस्तार करेंगे।'

'हे ऋषियों ! ये चौदह मन्वन्तर भूत, वर्तमान और भविष्य- तीनों ही काल में चलते रहते हैं। इन्हीं के द्वारा एक सहस्र चतुर्युगी वाले कल्प के समय की गणना की जाती है।'

सूतजी कहते हैं - हे ऋषियों ! मनु, मनुपुत्र, सप्तर्षि और देवता- सबको नियुक्त करने वाले स्वयं भगवान् ही हैं। भगवान् के जिन यज्ञपुरुष आदि अवतार शरीरों का वर्णन मैंने किया है, उन्हीं की प्रेरणा से मनु आदि विश्व-व्यवस्था का संचालन करते हैं। चतुर्युगी के अन्त में समय के उलट-फेर से जब श्रुतियाँ नष्ट प्राय हो जाती हैं, तब सप्तर्षिगण अपनी तपस्या से पुनः उसका साक्षात्कार करते हैं। उन श्रुतियों से ही सनातन धर्म की रक्षा होती है। भगवान् की प्रेरणा से अपने-अपने मन्वन्तर में बड़ी सावधानी से सब-के-सब मनु पृथ्वी पर चारों चरण से परिपूर्ण धर्म का अनुष्ठान करवाते हैं। मनुपुत्र मन्वन्तरभर काल और देश दोनों का विभाग करके प्रजापालन तथा धर्मपालन का कार्य करते हैं। पंच-महायज्ञ आदि कर्मों में जिन ऋषि, पितर, भूत और मनुष्य आदि का सम्बन्ध है- उनके साथ देवता उस मन्वन्तर में यज्ञ का भाग स्वीकार करते हैं।

'इन्द्र, भगवान् की दी हुई त्रिलोकी की अतुल सम्पत्ति का उपभोग और प्रजा का पालन करते हैं। संसार में यथेष्ट वर्षा करने का अधिकार भी उन्हीं को है। भगवान् युग-युग में सनक आदि सिद्धों का रूप धारण करके ज्ञान का, याज्ञवल्क्य आदि ऋषियों का रूप धारण करके कर्म का और दत्तात्रेय आदि योगेश्वरों के रूप में योग का उपदेश करते हैं। वे मरीचि आदि प्रजापतियों के रूप में सृष्टि का विस्तार करते हैं, सम्राट् के रूप में लुटेरों का वध करते हैं और शीत, उष्ण आदि विभिन्न गुणों को धारण करके कालरूप से सबको संहार की ओर ले जाते हैं। नाम और रूप की माया से प्राणियों की बुद्धि विमूढ़ हो रही है। इसलिये वे अनेक प्रकार के दर्शनशास्त्रों के द्वारा महिमा तो भगवान् की ही गाते हैं, परन्तु उनके वास्तविक स्वरूप को नहीं जान पाते।'

हे बंधुजनों! इस प्रकार मैंने तुम्हें महाकल्प और अवान्तर कल्प का परिमाण सुना दिया। पुराणतत्त्व के विद्वानों ने प्रत्येक अवान्तर कल्प में चौदह मन्वन्तर बतलाये हैं।

इति श्रीमद् राम कथा वंश चरित्र अध्याय-२ का भाग-१२(12) समाप्त !

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