भाग-१(1) राजा दशरथ द्वारा सुरक्षित अयोध्यापुरी का वर्णन
भाग-६(6) महाराज दशरथ के द्वारा अश्वमेध यज्ञ का सांगोपांग अनुष्ठान
भाग-९(9) ब्रह्माजी की प्रेरणा से देवता आदि के द्वारा विभिन्न वानरयूथपतियों की उत्पत्ति
भाग-१०(10) श्री भगवान् का प्राकट्य और बाललीला का आनंद
भाग-११(11) श्रीराम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के जन्म, संस्कार, शील स्वभाव एवं सद्गुण
भाग-१२(12) श्रीराम की बाललीला से कौशल्याजी का मोहित होना तथा चारों भाइयों का शिक्षा ग्रहण करना
भाग-१३(13) राजा के दरबार में विश्वामित्र का आगमन तथा उनका सत्कार
भाग-१४(14) विश्वामित्र के रोषपूर्ण वचन तथा वशिष्ठ का राजा दशरथ को समझाना
भाग-१६(16) श्रीराम और लक्ष्मण का विश्वामित्रजी द्वारा तारका वन का परिचय देना
भाग-१७(17) ब्रह्माजी कि आज्ञा से देवताओं का ऋषि त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप का देवगुरु के रूप में वरण
भाग-१९(19) भगवान् की प्रेरणा से देवताओं का दधीचि ऋषि के पास जाना
भाग-२०(20) देवताओं द्वारा दधीचि ऋषि की अस्थियों से वज्र-निर्माण और वृत्रासुर की सेना पर आक्रमण
भाग-२१(21) वृत्रासुर की वीरवाणी और भगवत्प्राप्ति
भाग-२२(22) इन्द्र द्वारा वृत्रासुर का वध
भाग-२३(23) इन्द्र पर ब्रह्महत्या का आक्रमण
भाग-२४(24) श्रीराम के पूछने पर विश्वामित्रजी का उनसे तारका की उत्पत्ति, विवाह एवं शाप आदि का प्रसंग सुनाकर उन्हें तारका - वध के लिये प्रेरित करना तथा श्रीराम द्वारा तारका का वध
भाग-२५(25) विश्वामित्र द्वारा श्रीराम को दिव्यास्त्र - दान तथा श्रीराम को अस्त्रों की संहार विधि बताना एवं उन्हें अन्यान्य अस्त्रों का उपदेश करना
भाग-२६(26) विश्वामित्रजी का श्रीराम से सिद्धाश्रम का पूर्व वृत्तान्त बताना और उन दोनों भाइयों के साथ अपने आश्रम पर पहुँचकर पूजित होना
भाग-२७(27) श्रीराम द्वारा विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा तथा राक्षसों का संहार
भाग-२८(28) श्रीराम, लक्ष्मण तथा ऋषियों सहित विश्वामित्र का मिथिला को प्रस्थान तथा मार्ग में संध्या के समय शोणभद्र तट पर विश्राम
भाग-२९(29) ब्रह्मपुत्र कुश के चार पुत्रों का वर्णन, शोणभद्र-तटवर्ती प्रदेश को वसु की भूमि बताना, कुशनाभ की सौ कन्याओं का वायु के कोप से 'कुब्जा' होना
भाग-३०(30) राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमाशीलता की प्रशंसा, ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति तथा उनके साथ कुशनाभ की कन्याओं का विवाह
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