भाग-८(8) दक्ष के द्वारा भगवान शिव के बिना यज्ञ का आयोजन करना तथा महर्षि दधीचि का दक्ष से शिव को बुलाने का आग्रह करना


सूतजी बोले - हे महर्षियों ! इस प्रकार, क्रोधित व अपमानित दक्ष ने कनखल नामक तीर्थ में एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में उन्होंने सभी देवर्षियों, महर्षियों तथा देवताओं को दीक्षा देने के लिए बुलाया। अगस्त्य, कश्यप, अत्रि, वामदेव, भृगु, दधीचि, भगवान व्यास, भारद्वाज, गौतम, पैल, पराशर, गर्ग, भार्गव, ककुष, सित, सुमंतु, त्रिक, कंक और वैशंपायन सहित अनेक ऋषि-मुनि अपनी पत्नियों व पुत्रों सहित प्रजापति दक्ष के यज्ञ में सम्मिलित हुए। 

'समस्त देवता अपने देवगणों के साथ प्रसन्नतापूर्वक यज्ञ में गए। अपने पुत्र दक्ष की प्रार्थना स्वीकार करके परमपिता ब्रह्माजी और बैकुण्ठलोक से भगवान विष्णु भी उस यज्ञ में पहुंचे। वहां दक्ष ने सभी पधारे हुए अतिथियों का खूब आदर-सत्कार किया। उस यज्ञ के स्थान का निर्माण देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा किया गया था। विश्वकर्मा ने बहुत से दिव्य भवनों का निर्माण किया। उन भवनों में दक्ष ने यज्ञ में पधारे अतिथियों को ठहराया। दक्ष ने भृगु ऋषि को ऋत्विज (यज्ञ करने वाला) बनाया। भगवान विष्णु यज्ञ के अधिष्ठाता थे।' 

'इस विधि को ब्रह्माजी ने ही बताया था। दक्ष सुंदर रूप धारण कर यज्ञ मण्डल में उपस्थित था। उस महान यज्ञ में ८८०००(88000) ऋषि एक साथ हवन कर सकते थे। ६४०००(64000) देवर्षि मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे। सभी मग्न होकर वेद मन्त्रों का गान कर रहे थे। दक्ष ने उस यज्ञ में गंधर्वों, विद्याधरों, सिद्धों, बारह आदित्यों व उनके गणों तथा नागों को भी आमंत्रित किया था। साथ ही देश विदेश के अनेक राजा उसमे उपस्थित थे, जो अपनी सेना एवं दरबारियों सहित यज्ञ में पधारे थे।'     

'कौतुक और मंगलाचार कर दक्ष ने यज्ञ की दीक्षा ली परंतु उस दुरात्मा दक्ष ने त्रिलोकीनाथ करुणानिधान भगवान शिव को यज्ञ के लिए निमंत्रण नहीं भेजा था। न ही अपनी पुत्री सती को ही बुलाया था। दक्ष के अनुसार भगवान शिव कपालधारी हैं, इसलिए उन्हें यज्ञ में स्थान देना गलत है। सती भी शिवजी की पत्नी होने के कारण 'कंपाली भार्या' हुईं। अतः उन्हें भी बुलाना पूर्णतः अनुचित था। दक्ष का यज्ञ महोत्सव अत्यंत धूमधाम एवं हर्ष उल्लास से आरंभ हुआ। सभी ऋषि-मुनि अपने-अपने कार्य में संलग्न हो गए। तभी वहां महर्षि दधीचि पधारे।' 

उस यज्ञ में भगवान शंकर को न पाकर दधीचि बोले - हे श्रेष्ठ देवताओ और महर्षियो! मैं आप सभी को श्रद्धापूर्वक नमस्कार करता हूं। हे श्रेष्ठजनो! आप सभी यहां इस महान यज्ञ में पधारे हैं। मैं आप सबसे यह पूछना चाहता हूं कि मुझे इस यज्ञ में त्रिलोकीनाथ भगवान शंकर कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। उनके बिना यह यज्ञ मुझे सूना लग रहा है। उनकी अनुपस्थिति से यज्ञ की शोभा कम हो गई है। जैसा कि आप जानते ही हैं कि भगवान शिव की कृपा से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। वे परम सिद्ध पुरुष, नीलकंठधारी प्रभु शंकर, यहां क्यों नहीं दिखाई दे रहे हैं? जिनकी कृपा से अमंगल भी मंगल हो जाता है, जो सर्वथा सबका मंगल करते हैं, उन भगवान शिव का यज्ञ में उपस्थित होना बहुत आवश्यक है। इसलिए आप सभी को यज्ञ के सकुशल पूर्ण होने के लिए परम कल्याणकारी भगवान शिव को अनुनय-विनय कर इस यज्ञ में लाना चाहिए। तभी इस यज्ञ की पूर्ति हो सकती है। इसलिए आप सभी श्रेष्ठजन तुरंत कैलाश पर्वत पर जाएं और भगवान शिव और देवी सती को यज्ञ में ले आएं। उनके आने से यह यज्ञ पवित्र हो जाएगा। वे परम पुण्यमयी हैं। उनके यहां आने से ही यह यज्ञ पूरा हो सकता है।

महर्षि दधीचि की बातों को सुनकर दक्ष हंसते हुए बोला - भगवान विष्णु देवताओं के मूल हैं। अतः मैंने उन्हें सादर यहां बुलाया है। जब वे यहां उपस्थित हैं तो भला यज्ञ में क्या कमी हो सकती है। भगवान विष्णु के साथ-साथ ब्रह्माजी भी वेदों, उपनिषदों और विविध  आगमों के साथ यहां पधारे हैं। देवगणों सहित इंद्र भी यहां उपस्थित हैं। वेद और वेदतत्वों को जानने वाले तथा उनका पालन करने वाले सभी महर्षि यज्ञ में आ चुके हैं। 

'जब सभी देवगण एवं श्रेष्ठजन यहां उपस्थित हैं तो रुद्रदेव की यहां क्या आवश्यकता है? मैंने सिर्फ ब्रह्माजी के कहने पर अपनी पुत्री सती का विवाह शिवजी से कर दिया था। मैं जानता हूं कि वे कुलहीन हैं। उनके माता-पिता का कुछ भी पता नहीं है। वे भूतों, प्रेतों और पिशाचों के स्वामी हैं। वे स्वयं ही अपनी प्रशंसा करते हैं, वे मूढ़, जड़, मौनी और ईर्ष्यालु होने के कारण यज्ञ में बुलाए जाने के योग्य नहीं हैं। अतः दधीचि जी, आप उन्हें यज्ञ में बुलाने के लिए न कहें। आप सब ऋषि-मुनि मिलकर अपने सहयोग से मेरे इस यज्ञ को सफल बनाएं।'

दक्ष की बात सुनकर दधीचि मुनि बोले - हे दक्ष ! परम कल्याणकारी भगवान शिव को यज्ञ में न बुलाकर तुमने इस यज्ञ को पहले ही भंग कर दिया है। यह यज्ञ कहलाने के लायक ही नहीं है। तुमने भगवान शिव को निमंत्रण न देकर उनकी अवहेलना की है। इसलिए तुम्हारा विनाश निश्चित है, यह कहकर दधीचि वहां से अपने आश्रम चले गए। उनके पीछे-पीछे भगवान शिव का अनुसरण करने वाले सभी ऋषि-मुनि भी वहां से चले गए। दक्ष के समर्थकों ने यज्ञ छोड़कर गए ऋषियों-मुनियों के प्रति व्यंग्य भरे वचनों का प्रयोग किया। 
'इस प्रकार प्रसन्न होकर दक्ष बोलने लगे कि यह बहुत अच्छी बात है कि मंदबुद्धि और मिथ्यावाद में लगे दुराचारी मनुष्य सभी इस यज्ञ का त्याग करके स्वयं ही चले गए हैं। भगवान विष्णु और ब्रह्माजी, जो कि सभी वेदों के ज्ञाता हैं और वेद तत्वों से परिपूर्ण हैं, इस यज्ञ में उपस्थित हैं। ये ही मेरे यज्ञ को सफल बनाएंगे।'

सूतजी बोले - दक्ष की ये बातें सुनकर वे सभी शिव माया से मोहित हो गए। सभी देवर्षि आदि देवताओं का पूजन करने लगे। इस प्रकार यज्ञ पुनः आरंभ हो गया। मुनिश्रेष्ठ ! इस प्रकार वहां यज्ञस्थल पर रुके अनेक देवर्षि और मुनि वहां पुनः यज्ञ को पूर्ण करने हेतु पूजन करने लगे।

इति श्रीमद् राम कथा रामायण माहात्म्य अध्याय का भाग-८(8) समाप्त ! 


 

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