भाग-७(7) भगवान् शिव और जलंधर का युद्ध

 


सूतजी बोले – हे ऋषियों ! भगवान शिव के गण व उनके दोनों पुत्र गणेश और कार्तिकेय बहुत बलवान, वीर और साहसी थे। उन्होंने अपने पराक्रम से दैत्येंद्र जलंधर के परम वीरों कालनेमि, शुंभ और निशुंभ को पराजित कर दिया। असुर सेना डरकर इधर-उधर छिप गई। सब दैत्य अपने प्राणों की रक्षा हेतु भागने लगे। यह देखकर असुरराज जलंधर अपने रथ पर बैठकर युद्धभूमि में आगे की ओर बढ़ने लगा और बड़ी भयानक गर्जना करने लगा। उसकी ललकार सुनकर त्रिलोकीनाथ भगवान शिव के गण भी बढ़-चढ़कर युद्ध करने लगे। असुर सेना और देवताओं की सेनाओं के रथों, हाथी, घोड़े, शंख तथा भेरी से युद्धभूमि गुंजायमान हो रही थी।

'दैत्यराज जलंधर ने तब ऐसा एक बाण छोड़ा, जिससे चारों ओर कोहरा फैल गया। धरती से आकाश तक सिर्फ एक धुंध ही दिखाई दे रही थी। फिर उसने नंदीश्वर, गणेश, वीरभद्र को एक साथ कई बाण मारकर घायल कर दिया। यह देखकर स्वामी कार्तिकेय को बहुत क्रोध आ गया और उन्होंने असुरराज जलंधर पर अपनी शक्ति चला दी। कार्तिकेय की चलाई गई शक्ति के फलस्वरूप जलंधर धरती पर गिर पड़ा परंतु गिरते ही वह उठकर खड़ा हो गया और पूरी शक्ति के साथ पुनः युद्ध करने लगा।' 

'उसने सबसे पहला प्रहार कार्तिकेय पर ही किया। जलंधर ने अपनी गदा उठा ली और पूरे बल के साथ कार्तिकेय को मारी जिससे कार्तिकेय अपनी चेतना खो बैठे और मूर्छित होकर धरती पर गिर पड़े। यह दृश्य देखकर गणेश और नंदी भी चिंतित हो उठे। तब जलंधर ने उन पर भी गदा से प्रहार किया। गदा के प्रहार से वे दोनों भी मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर गए।'

'तब वीरभद्र जलंधर से युद्ध करने के लिए आगे आए। जलंधर ने उन पर भी अपनी गदा से प्रहार किया, जिससे वीरभद्र का सिर फट गया और रक्त बहने लगा। यह देखकर सभी शिवगण व्याकुल हो गए और डरकर युद्ध-भूमि को छोड़कर इधर-उधर भागने लगे।'

'हे ऋषिगणों ! जब युद्धभूमि में देवसेना का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी वीर साहसी घायल होकर पृथ्वी पर गिर पड़े, तब यह देखकर सभी शिवगण भयभीत होकर शिव की शरण में चले गए। जब भगवान शिव को युद्धस्थल का सब समाचार मिल गया, तब वे स्वयं दैत्यराज जलंधर को सबक सिखाने के लिए युद्धस्थल की ओर चल पड़े। अपने आराध्य भगवान शिव को युद्ध का नेतृत्व करते देखकर सभी शिवगण, जो पहले डरकर भाग गए थे पुनः लौट आए। शिवगणों ने पहले जैसे जोश के साथ युद्ध करना प्रारंभ कर दिया।'

'भगवान शिव के रौद्र रूप को देखकर भयानक दैत्य भी भयभीत होने लगे और युद्ध छोड़कर भागने लगे। यह देखकर असुरों के स्वामी जलंधर को क्रोध आ गया। वह तीव्र गति से शिवजी की ओर दौड़ा। इस कार्य में शुंभ-निशुंभ नामक सेनापतियों ने अपने स्वामी का साथ दिया। यह देखकर भगवान शिव ने प्रतिउत्तर देते हुए जलंधर के बाणों को काट दिया।' 

'वे अपने धनुष से बाणों की वर्षा करने लगे। उन्होंने कई दैत्यों को फरसे से काट दिया। बलाहक और धस्मर जैसे भयानक राक्षसों को पल भर में मार गिराया। शिवजी का वाहन नंदी भी अपने सींगों के प्रहारों से सबको घायल करने लगा। तब यह देखकर जलंधर अपने सैनिकों को समझाने लगा कि वे न डरें और युद्ध करते रहें। पर दैत्य सेना भगवान शिव से युद्ध करने को तैयार ही नहीं हो रही थी। क्रोधित जलंधर उन्हें ललकारने लगा। जलंधर ने अनेकों बाणों को एक साथ चलाकर उसमें भगवान शिव को बांधने का प्रयास किया, लेकिन वह सफल न हो सका। भगवान शिव ने उसके सभी बाणों को काट दिया और उसके रथ की ध्वजा को भी नीचे गिरा दिया।'

'असुरराज जलंधर के सभी बाणों को काटने के पश्चात भगवान शिव ने एक बाण मारकर जलंधर को घायल कर दिया और उसके धनुष को काट दिया। यह देखकर जलंधर ने युद्ध करने के लिए गदा उठा ली। तब शिवजी ने अपने बाण से उसकी गदा के भी दो टुकड़े कर दिए। यह सब देखकर दैत्येंद्र जलंधर यह जान गया कि त्रिलोकीनाथ भगवान शिव उससे अधिक बलवान हैं और उन्हें युद्ध में पराजित कर पाना उसके लिए कठिन है।' 

'तब जलंधर ने जीतने के लिए गंधर्व माया उत्पन्न की। वहां उस युद्धस्थल पर हजारों की संख्या में गंधर्व और अप्सराओं के गण उत्पन्न हो गए और वहां नृत्य करने लगे। वहां मधुर संगीत बजने लगा। यह सब देखकर सभी देव सेना के सैनिक मोहित हो गए और युद्ध को भूलकर नृत्य और गाना-बजाना देखने में मग्न हो गए। इधर, देवाधिदेव भगवान शिव भी गंधर्व माया से मोहित होकर नृत्य देखने लगे।' 

'जब दैत्यराज जलंधर ने देखा कि सभी देवताओं सहित देवाधिदेव भगवान शिव भी उस गंधर्व माया के द्वारा मोहित होकर अप्सराओं के नृत्य को देख रहे हैं, तब वह वहां से चुपके से भाग खड़ा हुआ। असुरराज जलंधर त्रिलोकीनाथ भगवान शिव का रूप धारण कर बैल पर बैठकर देवी पार्वती के पास कैलाश पर्वत पर पहुंचा। वहां कैलाश पर देवी पार्वती अपनी सखियों के साथ व्यस्त थीं। जब उन्होंने अपने पति भगवान शिव को आता देखा, तब उन्होंने अपनी सखियों को वहां से भेज दिया और स्वयं भगवान शिव के समीप आ गईं।'

'देवी पार्वती के अप्रतिम सौंदर्य को देखकर जलंधर का मन विचलित हो उठा और वह उन्हें अपलक निहारने लगा। जलंधर के इस प्रकार के व्यवहार को देख पार्वती को यह समझते हुए देर नहीं लगी कि वह कोई बहुरूपिया है, जो भगवान शिव का रूप धारण कर उन्हें ठगने आया है। यह विचार मन में आते ही देवी पार्वती वहां से अंतर्धान हो गईं। तब वे एक अन्य स्थान पर पहुंची और उन्होंने भगवान श्रीहरि विष्णु का स्मरण करके उन्हें वहां बुलाया। विष्णुजी ने वहां पहुंचकर देवी को नमस्कार किया और उनसे प्रश्न किया कि क्या आप जलंधर के इस कार्य को जानते हैं?'

देवी पार्वती के इस प्रश्न को सुनकर श्रीविष्णु ने हाथ जोड़ लिए और बोले - हे माता! आपकी क्या आज्ञा है? मैं उस दुष्ट को किस प्रकार का दंड दूं? तब देवी ने कहा कि आप जो उचित समझें वह करें। तब श्रीविष्णु जलंधर को छलने के लिए उसके नगर की ओर चल दिए।

इति श्रीमद् राम कथा रावण चरित्र अध्याय-३ का भाग-७(7) समाप्त !

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