सूतजी कहते हैं - रामायण का यह माहात्म्य सुनकर मुनीश्वर सनत्कुमार बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने मुनिश्रेष्ठ नारदजी से पुन: जिज्ञासा की
सनत्कुमार बोले—मुनीश्वर ! आपने रामायण का माहात्म्य कहा । अब मैं उसकी विधि सुनना चाहता हूँ। महाभाग मुने! आप तत्त्वार्थ- ज्ञान में कुशल हैं; अत: अत्यन्त कृपापूर्वक इस विषय को यथार्थ रूप से बतायें।
नारदजी ने कहा – महर्षियो ! तुमलोग एकाग्रचित्त होकर रामायण की वह विधि सुनो, जो सम्पूर्ण लोकों में विख्यात है। वह स्वर्ग तथा मोक्ष - सम्पत्तिकी वृद्धि करनेवाली है। मैं रामायणकथा श्रवण का विधान बता रहा हूँ; तुम सब लोग उसे सुनो। रामायणकथा का अनुष्ठान करनेवाले वक्ता एवं श्रोता को भक्तिभाव से भावित होकर उस विधान का पालन करना चाहिये। उस विधि का पालन करने से करोड़ों पाप नष्ट हो जाते हैं। चैत्र, माघ तथा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि को कथा आरम्भ करनी चाहिये।
'पहले स्वस्तिवाचन करके फिर यह संकल्प करे कि 'हम नौ दिनों तक रामायण की अमृतमयी कथा सुनेंगे। फिर भगवान से प्रार्थना करे—'श्रीराम ! आजसे प्रतिदिन मैं आपकी अमृतमयी कथा सुनूँगा। यह आपके कृपाप्रसाद से परिपूर्ण हो।' नित्यप्रति अपामार्ग की शाखा से दन्तशुद्धि करके रामभक्ति में तत्पर हो विधिपूर्वक स्नान करे। अपनी इन्द्रियों को संयम में रखकर भाई-बन्धुओं के साथ स्वयं कथा सुने। पहले अपने कुलाचार के अनुसार दन्तधावनपूर्वक स्नान करके श्वेत वस्त्र धारण करे और शुद्ध हो घर आकर मौनभाव से दोनों पैर धोने के पश्चात् आचमन करके भगवान् नारायण का स्मरण करे।'
'फिर प्रतिदिन देवपूजन करके संकल्पपूर्वक भक्तिभाव से रामायणग्रन्थ की पूजा करे। व्रती पुरुष आवाहन, आसन, गन्ध, पुष्प आदि के द्वारा ॐ नमो नारायणाय' इस मन्त्रसे भक्तिपरायण होकर पूजन करे। सम्पूर्ण पापों की निवृत्ति के लिये अपनी शक्ति के अनुसार एक, दो या तीन बार प्रयत्नपूर्वक होम करे।'
'इस प्रकार जो मन और इन्द्रियों को संयम में रखकर रामायण की विधि का अनुष्ठान करता है, वह भगवान् विष्णु के धाम में जाता है; जहाँ से लौटकर वह फिर इस संसार में नहीं आता। जो रामायणसम्बन्धी व्रत को धारण करनेवाला तथा धर्मात्मा है, वह श्रेष्ठ पुरुष, चाण्डाल अथवा पतित मनुष्य का वस्त्र और अन्न से भी सत्कार न करे।'
जो नास्तिक, धर्ममर्यादा को तोड़ने वाले, परनिन्दक और चुगलखोर हैं, उनका रामायणव्रतधारी पुरुष वाणीमात्र से भी आदर न करे। जो पति के जीवित रहते ही परपुरुष के समागम से माता द्वारा उत्पन्न किया जाता है, उस जारज पुत्र को 'कुण्ड' कहते हैं। ऐसे कुण्ड के यहाँ जो भोजन करता है, जो गीत गाकर जीविका चलाता है, देवतापर चढ़ी हुई वस्तु का उपभोग करनेवाले मनुष्य का अन्न खाता है, वैद्य है, लोगों की मिथ्या प्रशंसा में कविता लिखता है, देवताओं तथा ब्राह्मणों का विरोध करता है, पराये अन्न का लोभी है और पर स्त्री में आसक्त रहता है, ऐसे मनुष्य का भी रामायणव्रती पुरुष वाणीमात्र से भी आदर न करे।'
'इस प्रकार दोषों से दूर एवं शुद्ध होकर जितेन्द्रिय एवं सबके हित में तत्पर रहते हुए जो रामायण का आश्रय लेता है, वह परम सिद्धि को प्राप्त होता है। गंगा के समान तीर्थ, माता के तुल्य गुरु, भगवान् विष्णु के सदृश देवता तथा रामायण से बढ़कर कोई उत्तम वस्तु नहीं है। वेदके समान शास्त्र, शान्ति के समान सुख, शान्ति से बढ़कर ज्योति तथा रामायण से उत्कृष्ट कोई काव्य नहीं है। क्षमा के सदृश बल, कीर्ति के समान धन, ज्ञान के सदृश लाभ तथा रामायण से बढ़कर कोई उत्तम ग्रन्थ नहीं है।'
'रामायणकथा के अन्त में वेदज्ञ वाचक को दक्षिणा सहित गौका दान करे। उन्हें रामायण की पुस्तक तथा वस्त्र और आभूषण आदि दे। जो वाचक को रामायण की पुस्तक देता है, वह भगवान् विष्णु के धाम में जाता है; जहाँ जाकर उसे कभी शोक नहीं करना पड़ता।'
'धर्मात्माओं में श्रेष्ठ सनत्कुमार! रामायण की नवाह कथा सुनने से यजमान को जो फल प्राप्त होता है, उसे सुनो। पञ्चमी तिथिको रामायण की अमृतमयी कथा को आरम्भ करके उसके श्रवणमात्र से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। यदि दो बार यह कथा श्रवण की गयी तो श्रोता को पुण्डरीक यज्ञ का फल मिलता है। जो जितेन्द्रिय पुरुष व्रतधारणपूर्वक रामायण कथा को श्रवण करता है, वह दो अश्वमेध यज्ञों का फल पाता है। मुनिवरो! जिसने चार बार इस कथा का श्रवण किया है, वह आठ अग्निष्टोम के परम पुण्यफल का भागी होता है। जिस महामनस्वी पुरुष ने पाँच बार रामायणकथा श्रवण का व्रत पूरा कर लिया है, वह अत्यग्निष्टोम यज्ञ के द्विगुण पुण्य फल का भागी होता है।'
'जो एकाग्रचित्त होकर इस प्रकार छ: बार रामायणकथा के व्रत का अनुष्ठान पूरा कर लेता है, वह अग्निष्टोम यज्ञ के आठ गुने फल का भागी होता है। मुनीश्वरो ! स्त्री हो या पुरुष, जो आठ बार रामायणकथा को सुन लेता है, वह नरमेध यज्ञ का पाँच गुना फल पाता है। जो स्त्री या पुरुष नौ बार इस व्रत का आचरण करता है, उसे तीन गोमेध यज्ञ का पुण्य फल प्राप्त होता है। जो पुरुष शान्तचित्त और जितेन्द्रिय होकर रामायण यज्ञ का अनुष्ठान करता है, वह उस परमानन्दमय धाम में जाता है, जहाँ जाकर उसे कभी शोक नहीं करना पड़ता। जो प्रतिदिन रामायण का पाठ अथवा श्रवण करता है, गंगा नहाता है और धर्ममार्ग का उपदेश देता है; ऐसे लोग संसार सागर से मुक्त ही हैं, इसमें संशय नहीं है।'
'महात्माओ! यतियों, ब्रह्मचारियों तथा प्रवीरों को भी रामायण की नवाह कथा सुननी चाहिये। रामकथा को अत्यन्त भक्ति पूर्वक सुनकर मनुष्य महान् तेज से उद्दीप्त हो उठता है और ब्रह्मलोक में जाकर वहीं आनन्द का अनुभव करता है। इसलिये विप्रेन्द्रगण! आपलोग रामायण की अमृतमयी कथा सुनिये। श्रोताओं के लिये यह सर्वोत्तम श्रवणीय वस्तु है और पवित्रों में भी परम उत्तम है। दु:स्वप्न को नष्ट करनेवाली यह कथा धन्य है । इसे प्रयत्नपूर्वक सुनना चाहिये। जो मनुष्य श्रद्धायुक्त होकर इसका एक श्लोक या आधा श्लोक भी पढ़ता है, वह तत्काल ही करोड़ों उपपातकों से छुटकारा पा जाता है। यह गुह्य से भी गुह्यतम वस्तु है, इसे सत्पुरुषों को ही सुनाना चाहिये।'
'भगवान् श्रीराम के मन्दिर में अथवा किसी पुण्यक्षेत्र में सत्पुरुषों की सभा में रामायणकथा का प्रवचन करना चाहिये। जो ब्रह्मद्रोही, पाखण्डपूर्ण आचार में तत्पर तथा लोगों को ठगने वाली वृत्ति से युक्त हैं, उन्हें यह परम उत्तम कथा नहीं सुनानी चाहिये। जो काम आदि दोषों का त्याग कर चुके हैं, जिनका मन रामभक्ति में अनुरक्त रहता है तथा जो गुरुजनों की सेवामें तत्पर हैं, उन्हीं के समक्ष यह मोक्ष की साधनभूत कथा बाँचनी चाहिये।'
'श्रीराम सर्वदेवमय माने गये हैं। वे आर्त प्राणियों की पीड़ा का नाश करनेवाले हैं तथा श्रेष्ठ भक्तों पर सदा ही स्नेह रखते हैं। वे भगवान् भक्ति से ही संतुष्ट होते हैं, दूसरे किसी उपाय से नहीं। मनुष्य विवश होकर भी उनके नाम का कीर्तन अथवा स्मरण कर लेने पर समस्त पातकों से मुक्त हो परमपद का भागी होता है। महात्माओ! भगवान् मधुसूदन संसाररूपी भयंकर एवं दुर्गम वन को भस्म करने के लिये दावानल के समान हैं। वे अपना स्मरण करनेवाले मनुष्यों के समस्त पापों का शीघ्र ही नाश कर देते हैं।'
'इस पवित्र काव्य के प्रतिपाद्य विषय वे ही हैं, अत: यह परम उत्तम काव्य सदा ही श्रवण करने योग्य है। इसका श्रवण अथवा पाठ करने से यह समस्त पापों का नाश करनेवाला है। जिसकी श्रीराम - रस में प्रीति एवं भक्ति है, वही सम्पूर्ण शास्त्रों के अर्थज्ञान में निपुण और कृतकृत्य है। ब्राह्मणो! उसकी उपार्जित की हुई तपस्या पवित्र, सत्य और सफल है; क्योंकि राम-रस में प्रीति हुए बिना रामायण के अर्थ - श्रवण में प्रेम नहीं होता है।'
'जो द्विज इस भयंकर कलिकाल में रामायण तथा श्रीराम नाम का सहारा लेते हैं, वे ही कृतकृत्य हैं । रामायण की इस अमृतमयी कथा का नवाह श्रवण करना चाहिये। जो महात्मा ऐसा करते हैं, वे कृतज्ञ हैं। उन्हें प्रतिदिन मेरा बारम्बार नमस्कार है। श्रीराम का नाम – केवल श्रीराम-नाम ही मेरा जीवन है। कलियुग में और किसी उपाय से जीवों की सद्गति नहीं होती, नहीं होती, नहीं होती।'
सूतजी कहते हैं - महात्मा नारदजी के द्वारा इस प्रकार ज्ञानोपदेश पाकर सनत्कुमारजी को तत्काल ही परमानन्द की प्राप्ति हो गयी। अत: विप्रवरो! तुम सब लोग रामायण की अमृतमयी कथा सुनो। रामायण को नौ दिनों में ही सुनना चाहिये। ऐसा करनेवाला समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। द्विजोत्तमो! इस महान् काव्य को सुनकर जो वाचक की पूजा करता है, उसपर लक्ष्मी सहित भगवान् विष्णु प्रसन्न होते हैं। विप्रेन्द्रगण! वाचक के प्रसन्न होने पर ब्रह्मा, विष्णु और महादेवजी प्रसन्न हो जाते हैं। इस विषय में कोई अन्यथा विचार नहीं करना चाहिये।
'रामायण के वाचक को अपने वैभव के अनुसार गौ, वस्त्र, सुवर्ण तथा रामायण की पुस्तक आदि वस्तुएँ देनी चाहिये। उस दानका पुण्यफल बता रहा हूँ, आपलोग एकाग्रचित्त होकर सुनें। उस दाता को ग्रह तथा भूतवेताल आदि कभी बाधा नहीं पहुँचाते। श्रीरामचरित्र का श्रवण करने पर श्रोता के सम्पूर्ण श्रेय की वृद्धि होती है। उसे न तो अग्नि की बाधा प्राप्त होती है और न चोर आदि का भय ही। वह इस जन्म में उपार्जित किये हुए समस्त पापों से तत्काल मुक्त हो जाता है। वह इस शरीर का अन्त होने पर अपनी सात पीढ़ियों के साथ मोक्ष का भागी होता है।'
सूतजी कहते हैं - पूर्वकाल में सनत्कुमार मुनि के भक्तिपूर्वक पूछने पर नारदजी ने उनसे जो कुछ कहा था, वह सब मैंने आपलोगों को बता दिया।
रामायण आदिकाव्य है। यह सम्पूर्ण वेदार्थों की सम्मति के अनुकूल है। इसके द्वारा समस्त पापों का निवारण हो जाता है। यह पुण्यमय काव्य सम्पूर्ण दुःखों का विनाशक तथा समस्त पुण्यों और यज्ञों का फल देनेवाला है। जो विद्वान् इसके एक या आधे श्लोकका भी पाठ करते हैं, उन्हें कभी पापों का बन्धन नहीं प्राप्त होता। श्रीराम को समर्पित किया हुआ यह पुण्य काव्य सम्पूर्ण कामनाओं को देनेवाला है। जो लोग भक्तिपूर्वक इसे सुनते और समझते हैं, उनको प्राप्त होनेवाले पुण्यफल का वर्णन सुनो।
'वे लोग सौ जन्मों में उपार्जित किये हुए पापों से तत्काल मुक्त हो अपनी हजारों पीढ़ियों के साथ परमपद को प्राप्त होते हैं। प्रतिदिन श्रीराम का कीर्तन सुनते हैं, उनके लिये तीर्थ सेवन, गोदान, तपस्या तथा यज्ञों की क्या आवश्यकता है। चैत्र, माघ तथा कार्तिक मास में रामायण की अमृतमयी कथा का नवाह पारायण सुनना चाहिये। रामायण श्रीरामचन्द्रजी की प्रसन्नता प्राप्त कराने वाला, श्रीरामभक्ति को बढ़ानेवाला, समस्त पापों का विनाशक तथा सभी सम्पत्तियों की वृद्धि करनेवाला है। जो एकाग्रचित्त होकर रामायण को सुनता अथवा पढ़ता है, वह सब पापों से मुक्त हो भगवान् विष्णु के लोक में जाता है।
इति श्रीमद् राम कथा रामायण माहात्म्य अध्याय का अंतिम भाग-७७(77) समाप्त !
इस अध्याय के प्रमुख स्त्रोत इस प्रकार हैं - श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भागवतपुराण, शिवमहापुराण एवं श्रीमद्वाल्मीकीरामायण
🙏जय श्रीराम !🙏
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