भाग-६९(69) कलियुग कि स्थिति तथा रामायण पाठ की महिमा का वर्णन

 


ऋषियों ने कहा - भगवन्! आप विद्वान् हैं, ज्ञानी हैं। हमने जो कुछ पूछा था, वह सब आपने हमें भलीभांति बताया है। संसार बंधन में बंधे हुए जीवों के दुःख बहुत हैं। इस संसार बंधन से मुक्ति दिलाने वाला कौन है? आपने कहा है कि कलियुग में वेदोक्त मार्ग नष्ट हो जाएंगे। अधर्मपरायण पुरुषों को प्राप्त होने वाली यातनाओं का भी आपने वर्णन किया है। घोर कलियुग आने पर जब वेदोक्त मार्ग लुप्त हो जायेंगे, उस समय पाखंड फैल जायेगा। यह बात प्रसिद्ध है। प्रायः सभी लोगों ने ऐसी बात कही है। 

'कलियुग के सभी लोग कामवेदना से पीड़ित, नाटे शरीर के और लोभी होंगे तथा धर्म और ईश्वर का आश्रय छोड़कर आपस में एक दूसरे पर ही निर्भर रहनेवाले होंगे। प्रायः सब लोग थोड़ी आयु और अधिक संतान वाले होंगे। उस युग कि स्त्रियां अपने ही शरीर के पोषण में तत्पर और वेश्याओं के समान आचरण में प्रवृत होंगी। वे अपने पति की आज्ञा का अनादर करके सदा दूसरों के घर जाया-आया करेंगी। दुराचारी पुरुषों से मिलने की सदैव अभिलाषा करेंगी।'

'उत्तम कुल की स्त्रियां भी परपुरुषों के निकट औछी बात करने वाली होंगी, कठोर और असत्य बोलेंगी तथा शरीर को शुद्ध और सुसंस्कृत बनाये रखने के सद्गुणों से वंचित होंगी। कलियुग में अधिकांश स्त्रियां वाचाल (व्यर्थ बकवास करने वाली) होंगी। भिक्षा से जीवन निर्वाह करने वाले सन्यासी भी मित्र आदि के स्नेह सम्बन्ध में बंधे रहने वाले होंगे। वे भोजन के लिए चिंतित होने के कारण लोभवश शिष्यों का संग्रह करेंगे। स्त्रियां दोनों हाथों से सिर खुजलाती हुई गृहपति कि आज्ञा का जानबूझकर उल्लंघन करेंगी। जब ब्राह्मण पाखंडी लोगों के साथ रहकर पाखंडपूर्ण बात करने लगें, तब जानना चाहिए कि कलियुग खूब बढ़ गया है।'

'ब्राहम्ण! इस प्रकार घोर कलियुग आने पर सदा पापपरायण रहने के कारण जिनका अन्तः करण शुद्ध नहीं हो सकेगा, उन लोगों कि मुक्ति कैसे होगी? धर्मात्माओं में सर्वश्रेष्ठ सूतजी! देवाधिदेव देवेश्वर जगद्गुरु भगवान श्रीरामचन्द्रजी जिस प्रकार संतुष्ट हों, वह उपाय हमें बताइये। मुनिश्रेष्ठ सूतजी! इन सारी बातों पर आप प्रकाश डालिये। आपके वचनामृत का पान करने से किसको संतोष नहीं होता है।'

सूतजी ने कहा - मुनिवरों! आप सब लोग सुनिए। आपको जो सुनना अभीष्ट है, वह मैं बताता हूँ। महात्मा नारदजी ने सनत्कुमारों को जिस रामायण नामक महाकाव्य का गान सुनाया था, वह समस्त पापों का नाश और दुष्ट ग्रहों की बाधा का निवारण करने वाला है। वह काव्य अपने पाठक और श्रोताओं के लिए समस्त कल्याणमयी सिद्धियों को देने वाला है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - इन चारों पुरुषार्थों का साधक है, महान फल देने वाला है। यह अपूर्व काव्य महान फल प्रदान करने कि शक्ति रखता है। आपलोग एकाग्रचित होकर इसे श्रवण करें।

'महान पातकों अथवा सम्पूर्ण उपपातकों से युक्त मनुष्य भी उस ऋषिप्रणीत दिव्या काव्य का श्रवण करने से शुद्धि (अथवा सिद्धि) प्राप्त कर लेता है। सम्पूर्ण जगत के हित साधने में लगें रहने वाले जो मनुष्य सदा रामायण के अनुसार बर्ताव करते हैं, वे ही सम्पूर्ण शास्त्रों के मर्म को समझने वाले और कृतार्थ हैं।'

'विप्रवरों! रामायण धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का साधन तथा परम अमृत रूप है; अतः सदा भक्ति भाव से उसका श्रवण करना चाहिए। जिस मनुष्य के पूर्वजन्मोपार्जित सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, उसी का रामायण के प्रति अधिक प्रेम होता है। यह निश्चित बात है। जो पाप के बंधन में जकड़ा हुआ है, वह रामायण कि कथा आरम्भ होने पर उसकी अवहेलना करके दूसरी-दूसरी निम्न कोटि की बातों में फँस जाता है। उन असाद्गाथाओं में अपनी बुद्धि के आसक्त होने के कारण वह तदनुरूप ही बर्ताव करने लगता है।'

'इसलिये द्विजेन्द्रगण ! आपलोग रामायण नामक परम उत्तम काव्य का श्रवण करें; जिसके सुनने से जन्म, जरा और मृत्यु के भय का नाश हो जाता है तथा श्रवण करने वाला मनुष्य श्रीरामचन्द्रजी के परम पद को प्राप्त कर लेता है। जो ब्रह्मा, रूद्र और विष्णु भिन्न-भिन्न रूप धारण करके विश्व कि सृष्टि, संहार और पालन करते हैं, उन आदिदेव परमोत्कृष्ट परमात्मा श्रीरामचन्द्रजी को अपने हृदय-मंदिर में स्थापित करके मनुष्य मोक्ष का भागी होता है।'

'जो नाम तथा जाति आदि विकल्पों से रहित, कार्य-कारणों से परे, सर्वोत्कृष्ट, वेदांत शास्त्र के द्वारा जानने योग्य एवं अपने ही प्रकाश से प्रकाशित होने वाला परमात्मा है, उसका समस्त वेदों और पुराणों के द्वारा साक्षात्कार होता है (इस रामायण के अनुशीलन से भी उसकी प्राप्ति होती है)। 

'विप्रवरों! कार्तिक, माघ और चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में नौं दिनों में रामायण की अमृतमयी कथा का श्रवण करना चाहिए। जो इस प्रकार श्रीरामचन्द्रजी के मंगलमय चरित्र का श्रवण करता है, वह इस लोक और परलोक में भी अपनी समस्त उत्तम कामनाओं को प्राप्त कर लेता है। वह सब पापों से मुक्त हो अपनी इक्कीस पीढ़ियों के साथ श्रीरामचन्द्रजी के उस परम धाम में चला जाता है, जहाँ जाकर मनुष्य को कभी शौक नहीं करना पड़ता है। चैत्र, माघ और कार्तिक के शुक्ल पक्ष में परम पुण्यमय रामायण कथा का नवाह-पारायण करना चाहिए तथा नौ दिनों तक इसे प्रयत्न पूर्वक सुनना चाहिए।'

'रामायण आदिकाव्य है। यह स्वर्ग और मोक्ष देने वाला है, अतः सम्पूर्ण धर्मों से रहित घोर कलियुग आने पर नौं दिनों में रामायण की अमरोत्तमयी कथा का श्रवण करना चाहिए। ब्राहम्णों! जो लोग भयंकर कलिकाल में श्रीराम-नाम का आश्रय लेते हैं, वे ही कृतार्थ होते हैं। कलियुग उन्हें बाधा नहीं पहुंचता। जिस घर में प्रतिदिन रामायण कि कथा होती है, वह तीर्थरूप हो जाता है। वहां जाने से दुष्टों के पापों का नाश होता है।'

'तपोधनों! इस शरीर में तभी तक पाप रहते हैं, जब तक मनुष्य श्रीरामायण कथा का भलीभांति श्रवण नहीं करता। संसार में श्रीरामायण कि कथा परम दुर्लभ ही है। जब करोड़ों जन्मों के पुण्यों का उदय होता है, तभी उसकी प्राप्ति होती है।'

'श्रेष्ठगणों! कार्तिक, माघ और चैत्र के शुक्ल पक्ष में रामायण के श्रवण मात्र से राक्षस भाव वाले सौदास भी शाप मुक्त हो गये थे। सौदास ने महर्षि गौतम के शाप से राक्षस-शरीर प्राप्त किया था। वे रामायण के प्रभाव से ही पुनः उस शाप से छुटकारा पा सके थे। जो पुरुष श्रीरामचन्द्रजी की भक्ति का आश्रय ले प्रेमपूर्वक इस कथा का श्रवण करता है, वह बड़े-बड़े पापों तथा पातक आदि से मुक्त जो जाता है।'   

इति श्रीमद् राम कथा रामायण माहात्म्य अध्याय का भाग-६९(69) समाप्त !                                 

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