भाग-५८(58) रावण का नवग्रहों को बंदी बनाना तथा मुनि अगस्त्य द्वारा मेघनाद के वध का रहस्य बताना

 


अगस्त्यजी कहते हैं - रघुनन्दन ! रावण इतना अधिक बलशाली था कि सभी देवता, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, विद्याधर तथा ग्रह-नक्षत्र उससे घबराते थे। रावण ने लंका में दसों दिक्पालों को पहरे पर नियुक्त किया हुआ था। रावण की पत्नी मंदोदरी जब माँ बनने वाली थी (मेघनाद के जन्म के समय) तब रावण ने समस्त ग्रह- मंडल को एक निश्चित स्थिति में रहने के लिए सावधान कर दिया था जिससे उत्पन्न होने वाला पुत्र अत्यंत तेजस्वी, शौर्य, पराक्रम से युक्त हो। 

'उसने ऐसा समय साध लिया था जिस समय में यदि किसी का जन्म हो तो वो अजेय एवं अमितायु (अत्यंत दीर्घायु) से संपन्न होगा। लेकिन जब मेघनाद का जन्म हुआ तो बाकी सारे ग्रहों ने आज्ञा का पालन किया किन्तु ठीक उसी समय दैवीय प्रेरणा से शनि ग्रह ने अपनी स्थिति में परिवर्तन कर लिया। जिस स्थिति में शनि के होने की वजह से रावण का पुत्र दीर्घायु होता, स्थिति परिवर्तन से वही पुत्र अब अल्पायु हो गया। रावण इससे अत्यंत क्रोधित हो गया। इस भयंकर क्रोध में उसने शनि के ऊपर गदा का प्रहार किया जिससे शनि के पैर में चोट लग गयी और वो पैर से कुछ लाचार हो गए अर्थात लंगड़े हो गए।' 

'इन सब वजहों से रावण - पुत्र मेघनाद, प्रचंड पराक्रमी, तेजस्वी और शौर्यवान तो था लेकिन अल्पायु था और शेषनाग जी के अंश लक्ष्मण जी के द्वारा मारा गया। रावण ने अपनी मृत्यु का कारण जानने के बाद उसे बदलने का निश्चय किया। वो महान योद्धा था। नारायणास्त्र को छोड़कर विश्व के सभी दिव्यास्त्र उसके पास थे (हालाँकि पाशुपतास्त्र उसके लिए उपयोगी सिद्ध नहीं हुआ)। उसके बल का ऐसा प्रताप था कि युद्ध में उसने यमराज को भी पराजित किया और स्वयं नारायण के सुदर्शन चक्र को पीछे हटने पर विवश कर दिया। ब्रह्मा के वरदान से उसकी नाभि में अमृत था जिसके सूखने पर ही उसकी मृत्यु हो सकती थी। रूद्र के वरदान से उसका शीश चाहे कितनी बार भी काटो, उससे उसकी मृत्यु नहीं हो सकती थी। किन्तु इतना सब होने के बाद भी वो अजेय और अवध्य नहीं था। उसने निश्चय किया कि वो अपने पुत्र, जो अभी मंदोदरी के गर्भ में था, उसे अविजित और अवध्य बनाएगा।'

'श्रीराम! भगवान शंकर से जो उसे ज्ञान और वरदान प्राप्त हुआ था, उससे उसने सभी नवग्रहों और ज्योतिष विज्ञान का गहन अध्ययन किया। उसे ज्ञात हुआ कि अगर नवग्रह उसके अनुसार अपनी स्थिति बदल सकें तो वो मृत्यु को भी पीछे छोड़ सकता है। इसी कारण उसने इंद्र पर आक्रमण किया और अपनी अतुल शक्ति, वरदान, विद्या और पांडित्य के बल पर उसने नवग्रहों को अपने अधीन कर लिया। इस बीच मंदोदरी के प्रसव की घडी भी नजदीक आ गयी। जब रावण के पुत्र का जन्म होने ही वाला था, उसने सभी नवग्रहों को ये आदेश दिया कि वो उसके पुत्र की कुंडली के ११ वें घर पर स्थित हो जाएँ। व्यक्ति की कुंडली का ११वां घर शुभता का प्रतीक होता है। यदि ऐसा हो जाता तो उसके होने वाले पुत्र की मृत्यु असंभव हो जाती।'

'रावण की आज्ञा अनुसार सभी ग्रह उसके होने वाले पुत्र की कुंडली के ११ वें घर में स्थित हो गए। रावण निश्चिंत था कि अब इस मुहूर्त में उत्पन्न होने वाला उसका पुत्र अजेय होगा। किन्तु अंतिम क्षणों में, जब उसका पुत्र पैदा होने ही वाला था, शनिदेव उसकी कुंडली के ११वें घर से उठ कर १२ वें घर में स्थित हो गए। प्राणी की कुंडली का १२वां घर अशुभ लक्षणों का प्रतीक है। ठीक उसी समय रावण के पुत्र का जन्म हुआ जिसे देख कर बादल घिर आये और बिजली चमकने लगी। इसी कारण रावण ने उसका नाम 'मेघनाद' रखा। अंत समय में शनिदेव के १२वें घर में स्थित होने के कारण मेघनाद महाशक्तिशाली तो हुआ किन्तु अल्पायु और वध्य रह गया।'

'रावण हर तरह से निश्चिंत था किन्तु जब उसने अपने राजपुरोहित से अपने पुत्र की कुंडली बनाने को कहा तब उसे पता चला कि शनिदेव ने उसकी आज्ञा का उलंघन किया है। उसे अपार दुःख हुआ और उसने ब्रह्मदण्ड की सहायता से शनि को परास्त कर बंदी बना लिया। रावण के दरबार में नवग्रह सदैव उपस्थित रहते थे किन्तु शनिदेव से विशेष द्वेष के कारण उन्हें रावण सदैव अपने चरण पादुकाओं के स्थान पर रखता था। बाद में लंका दहन के समय महाबली हनुमान ने शनिदेव को मुक्त करवाया।'

'रावण ने सब ग्रहों को अपने पैर के नीचे दबाकर रखा था जिससे कि वह मुक्त न हो सकें। उधर देवताओं ने ग्रहों की मुक्ति की एक योजना बनाई। इस योजना के अनुसार नारद ने रावण के पास जाकर पहले उसका यशगान किया। फिर उससे कहा कि ग्रहों को जीतकर उसने बहुत अच्छा किया। पर जिसे जीता जाए, पैर उसकी कमर पर नहीं, उसकी छाती पर रखना चाहिए। रावण को यह सुझाव अच्छा लगा। उसने अपना पैर थोड़ा सा उठाकर ग्रहों को पलटने का आदेश दिया। ज्यों ही ग्रह पलटे, शनि ने तुरन्त रावण पर अपनी दृष्टि डाल दी। उसी समय से रावण की शनि दशा आरम्भ हो गई।'

'जब रावण की समझ में आया कि नारद क्या खेल खेल गए, तो उसे बहुत क्रोध आया। उसने शनि को एक शिवलिंग के ऊपर इस प्रकार बाँध दिया कि वह बिना शिवलिंग पर पैर रखे भाग नहीं सकता था। वह जानता था कि शनि शिव का भक्त और उनका शिष्य होने के कारण कभी भी शिवलिंग पर पैर नहीं रखेगा। पर उसकी शनि दशा आरम्भ हो चुकी थी। हनुमान सीता को खोजते हुए लंका पहुँच गए।'

'शनि ने हनुमान से प्रार्थना की कि वह देवताओं के हित के लिए अपना सिर शिवलिंग और उसके पैर के बीच कर दें जिससे वह उनके सिर पर पैर रखकर उतर भागे। हनुमान ने पूछा ऐसा करने से उन पर शनि का क्या दुष्प्रभाव होगा। शनि ने बताया कि उनका घर परिवार उनसे बिछड़ जाएगा। हनुमान मान गए क्योंकि उनका कोई घर परिवार था ही नहीं। इस उपकार के बदले शनि ने हनुमान से कोई वर माँगने के लिए कहा। हनुमान ने वर माँगा कि शनिदेव कभी उनके किसी भक्त का अहित नहीं करें।'

'अब स्वयं के समान रावण ने मेघनाद को भी रूद्र का कृपापात्र बनाया। उसका पराक्रम देख कर स्वयं भगवान शंकर ने उसे रावण से भी महान योद्धा बताया। वही एक योद्धा था जिसके पास तीनों महास्त्र (ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र एवं पाशुपतास्त्र) सहित संसार के समस्त दिव्यास्त्र थे। इसी कारण वही आज तक का एक मात्र योद्धा बना जिसे 'अतिमहारथी' होने का गौरव प्राप्त हुआ। उसी बल पर उसने देवराज इंद्र को परास्त किया और इंद्रजीत कहलाया। उसे कुछ विशेष वरदान भी प्राप्त हुए जिससे वो एक प्रकार से अवध्य हो गया किन्तु उन वरदानों को लक्ष्मण ने संतुष्ट किया और आखिरकार उसका वध किया। लक्ष्मण ने उसका वध किया इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए और ये भी सत्य है कि इस पूरे संसार में मेघनाद को लक्ष्मण के अतिरिक्त कोई और मार भी नहीं सकता था, यहाँ तक कि स्वयं श्रीराम भी नहीं।'

भरत को बड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे। उन्होंने श्रीराम से पूछा कि क्या ये बात सत्य है और जब राम ने इसकी पुष्टि की तो भी भरत के मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा कठिन  था ? उन्होंने पूछा - हे महर्षि! अगर आप और भैया ऐसा कह रहे हैं तो ये बात अवश्य ही सत्य होगी और मुझे इस बात की प्रसन्नता भी है कि मेरा भाई विश्व का सर्वश्रेष्ठ योद्धा है किन्तु फिर भी मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर ऐसा क्या रहस्य है कि मेघनाद को लक्ष्मण के अतिरिक्त कोई और नहीं मार सकता था?

अगस्त्य मुनि ने कहा - हे भरत! मेघनाद ही विश्व का इकलौता ऐसा योद्धा था जिसके पास विश्व के समस्त दिव्यास्त्र थे। उसके पास तीनों महास्त्र - ब्रम्हा का ब्रम्हास्त्र, नारायण का नारायणास्त्र एवं महादेव का पाशुपतास्त्र भी था और उसे ये वरदान था कि उसके रथ पर रहते हुए कोई उसे परास्त नहीं कर सकता था इसी कारण वो अजेय था। उस समय संसार में केवल वही एक योद्धा था जिसने अतिमहारथी योद्धा का स्तर प्राप्त किया था। ये सत्य है कि उसके सामान योद्धा वास्तव में कोई और नहीं था । उसने स्वयं भगवान रूद्र से युद्ध की शिक्षा ली और समस्त दिव्यास्त्र प्राप्त किये। 

'भगवान रूद्र ने स्वयं ही उसे रावण से भी महान योद्धा बताया था और उसकी शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात कहा था कि वो एक सम्पूर्ण योद्धा बन चुका है और इस संसार में तो उसे कोई और परास्त नहीं कर सकता। उन्होंने यहाँ तक कहा कि उन्हें संदेह है कि स्वयं वीरभद्र भी मेघनाद को परास्त कर सके। इसके अतिरिक्त उसकी परम पवित्र पत्नी सुलोचना का सतीत्व भी उसकी रक्षा करता था।'

इति श्रीमद् राम कथा रावण चरित्र अध्याय-३ का भाग-५८(58) समाप्त !

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