भाग-५०(50) बारात का विदा होना तथा शिव-पार्वती का कैलाश पर निवास

 


सूतजी बोले - हे मुनिजनों ! इस प्रकार ब्राह्मणी ने देवी पार्वती को पतिव्रत धर्म की शिक्षा देने के उपरांत महारानी मैना से कहा कि हे महारानी ! आपकी आज्ञा के अनुसार मैंने आपकी पुत्री को पतिव्रत धर्म एवं उसके पालन के विषय में बता दिया। अब आप इसकी विदाई की तैयारी कीजिए। देवी मैना ने पार्वती को अपने हृदय से लगा लिया और जोर-जोर से रोने लगीं। अपनी माता को इस प्रकार रोते देख पार्वती की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी। पार्वती और मैना को रोता देख सभी देवताओं की पत्नियां एवं वहां उपस्थित सभी नारियां भावविह्वल हो उठीं। तभी पर्वतराज हिमालय अपने पुत्रों मैनाक, मंत्रियों के साथ वहां आए और मोह के कारण अपनी पुत्री पार्वती को गले से लगाकर रोने लगे। गिरिजा की मां, भाभियां तथा वहां उपस्थित सभी स्त्रियां रो रही थीं। तब तत्वज्ञानियों और मुनियों तथा पुरोहितों ने अध्यात्म ज्ञान द्वारा सबको समझाया तथा यह भी बताया कि उपस्थित शुभमुहूर्त में ही बारात विदा करनी चाहिए।

'ऋषि-मुनियों के समझाने से भावनाओं का सागर थमा। तब पार्वती ने भक्ति-भाव से अपने माता-पिता, भाइयों एवं गुरुजनों के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया तथा पुनः रोने लगीं। तब सबने प्रेमपूर्वक उन्हें चुप कराया। शैलराज हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती के बैठने के लिए एक सुंदर रत्नों से जड़ी हुई पालकी मंगवाई। ब्राह्मण पत्नियों ने उन्हें उस पालकी में बैठाया। सभी ने उन्हें ढेरों आशीष और शुभकामनाएं दीं। शैलराज हिमालय और मैना ने उन्हें अनेक दुर्लभ वस्तुएं उपहार स्वरूप भेंट कीं।' 

देवी पार्वती ने हाथ जोड़कर सबको विनम्रतापूर्वक नमस्कार किया और उनकी पालकी वहां से चल दी। प्रेम के वशीभूत होकर उनके पिता हिमालय और भाई भी उनकी पालकी के साथ-साथ चल दिए। कुछ देर बाद वे उस स्थान पर पहुंचे जहां शिवजी अन्य बारातियों के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। हिमालय ने नम्रतापूर्वक वहां उपस्थित भगवान शिव, ब्रह्मा, विष्णु सहित सभी श्रेष्ठजनों को नमस्कार किया और अपनी पुत्री को शिवजी को सौंप दिया। तत्पश्चात सबसे विदा लेकर वे हिमालयपुरी लौट गए। जब शैलराज हिमालय अपने नगर को लौट गए। तब सभी कैलाश पर्वत की ओर चल दिए। भगवान शिव और पार्वती के विवाह हो जाने पर सभी की प्रसन्नता की कोई सीमा न रही।' 

'सभी उत्साहपूर्वक चलने लगे। महादेवजी के शिवगण नाचते-कूदते, गाते-बजाते अपने स्वामी के परम पावन निवास की ओर बढ़ रहे थे। ब्रह्माजी और श्रीहरि विष्णुजी भी शिवजी के विवाह होने से प्रसन्न थे। उधर, देवराज इंद्र के हर्ष की कोई सीमा नहीं थी। वह सोच रहे थे कि शिव-पार्वती के विवाह से उनके कष्टों और दुखों में अवश्य कमी होगी। उन्हें इस बात का विश्वास हो गया था कि अब जल्द ही उन्हें और सब देवताओं को तारकासुर नामक भयंकर दैत्य से मुक्ति अवश्य मिलेगी। भगवान शिव भी हर्ष का अनुभव कर रहे थे, उन्हें उनके जन्म जन्म की प्रेयसी पार्वती पुनः पत्नी रूप में प्राप्त हो गई थी। इस प्रकार प्रसन्नतापूर्वक आनंद में मगन होकर सभी कैलाश पर्वत की ओर जा रहे थे। उस समय सभी दिशाओं से पुष्प वर्षा हो रही थी, मंगल ध्वनि बज रही थी और मंगल गान गाए जा रहे थे। इस प्रकार यात्रा करते हुए सभी कैलाश पर्वत पर पहुंचे।' 

वहां पहुंचकर भगवान शिव ने पार्वती से कहा - हे देवेश्वरी! आप सदा से ही मेरी प्रिया हैं। आप पूर्व जन्म में मुझसे बिछुड़ गई थीं। सब देवताओं की कृपा से आज हम पुनः एक हो गए हैं। आज आपको पुनः अपने पास विराजमान पाकर मैं बहुत प्रसन्न हूं। हम दोनों का साथ तो जन्म-जन्मांतरों से है । शिव शिवा के बिना और शिवा शिव के बिना अधूरी हैं। आज मुझे पुनः अपनी प्राणवल्लभा मिल गई हैं।

प्रभु शिव की इन प्यारी बातों को सुनकर देवी पार्वती का मुख लज्जा से लाल हो गया। उनके बड़े-बड़े सुंदर नेत्र झुक गए और वे धीरे से बोलीं- हे नाथ! आपकी हर एक बात मुझे स्मरण है। मेरे जीवन में सबकुछ आप ही हैं। आज आपने अपनी इस दासी को अपने चरणों में स्थान देकर बहुत बड़ा उपकार किया है। मैं आपको पति के रूप में पाकर धन्य हो गई हूं ।

'देवी पार्वती के उत्तम मधुर वचनों को सुनकर भगवान शिव मुस्कुरा दिए। तत्पश्चात भगवान शिव ने सभी देवताओं को स्वादिष्ट भोजन कराया एवं उन्हें सुंदर उपहार भेंट स्वरूप दिए। भोजन करने के बाद सभी देवता एवं ऋषि-मुनि भगवान शिव के पास आए और उन्हें प्रणाम कर उनकी स्तुति करने लगे और शिव-पार्वती से आज्ञा लेकर अपने-अपने धाम चले गए। तब ब्रह्माजी और श्रीहरि ने भी चलने के लिए आज्ञा मांगी तो शिवजी ने उन्हें प्रणाम किया। तब ब्रह्माजी और विष्णुजी ने हृदय से लगाकर उन्हें आशीर्वाद दिया। फिर वे भी अपने-अपने लोकों को चले गए।'

'सबके कैलाश पर्वत से चले जाने के बाद भगवान शिव अपनी प्राणवल्लभा पार्वती के साथ आनंदपूर्वक वहां निवास करने लगे। भगवान शिव के गण शिव-पार्वती की भक्तिपूर्वक आराधना करने लगे।' 

सूतजी बोले - हे मुनिवरों ! इस प्रकार मैंने आप सभी को भगवान शिव-पार्वती के विवाह का पूर्ण विवरण सुनाया। यह उत्तम कथा शोक का नाश करने वाली, आनंद, धन और आयु की वृद्धि करने वाली है। जो मनुष्य सच्चे मन से प्रतिदिन इस प्रसंग को पढ़ता अथवा सुनता है, वह शिवलोक को प्राप्त कर लेता है। इस कथा से समस्त रोगों का नाश होता है तथा सभी विघ्न बाधाएं दूर हो जाती हैं। यह कथा यश, पुत्र, पौत्र आदि मनोवांछित वस्तु प्रदान करने वाली तथा मोक्ष प्रदान करने वाली है। सभी शुभ अवसरों और मंगल कार्यों के समय इस कथा का पठन अथवा श्रवण करने से समस्त कार्यों की सिद्धि होती है। इसमें कोई संशय नहीं है । यह सर्वथा सत्य है

इति श्रीमद् राम कथा रामायण माहात्म्य अध्याय का भाग-५०(50) समाप्त !

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