भाग-४९(49) पार्वती को पतिव्रत धर्म का उपदेश

 


सूतजी बोले – हे मुनिश्रेष्ठ ! जब शैलराज हिमालय और देवी मैना से आज्ञा लेकर भगवान शिव सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों सहित अन्य देवगणों व शिवगणों को साथ लेकर उस स्थान से बाहर चले गए, तब सप्तऋषियों ने कहा कि हे शैलराज! अपनी पुत्री को शीघ्र ही भगवान शिव के साथ भेजने की कृपा करें। यह सुनकर हिमालय बहुत व्याकुल हो गए। उन्होंने देवी मैना से पार्वती को भेजने के लिए कहा। देवी मैना ने वैदिक रीति का पालन करते हुए अपनी पुत्री का सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से शृंगार किया। उस समय मैना ने एक ब्राह्मण पत्नी को बुलाकर पतिव्रत धर्म की शिक्षा देने के लिए कहा।

ब्राह्मण पत्नी ने वहां आकर पार्वती को शिक्षा देते हुए कहा - हे पार्वती! इस सुंदर संसार में नारी विशेष पूजनीय मानी जाती है। जो स्त्रियां पतिव्रत का पालन करती हैं, वे धन्य हैं। वे दोनों कुलों को पवित्र करती हैं। उनके दर्शन मात्र से पाप नष्ट हो जाते हैं। जो पति को साक्षात ईश्वर मानकर उसकी सेवा-सुश्रूषा करती हैं, वे स्त्रियां इस लोक में आनंद प्राप्त कर सद्गति को प्राप्त करती हैं और अपने दोनों कुलों को तार देती हैं। 

'सावित्री, लोपामुद्रा, अरुंधती, शांडिली, शतरूपा, अनसूया, लक्ष्मी, स्वधा, सती, संज्ञा, सुमति, श्रद्धा, मैना और स्वाहा आदि नारियां साध्वी कहलाती हैं। वे अपने पातिव्रत्य धर्म के कारण ब्रह्मा, विष्णु और शिव की भी पूजनीय हैं। इसलिए स्त्री को सदैव अपने पति की आज्ञा का पालन करना चाहिए। पतिव्रता स्त्री पति के भोजन कर लेने के बाद ही भोजन करे। जब तक वह खड़ा हो स्वयं भी न बैठे। पति के सो जाने के बाद ही सोए और उसके उठने से पहले उठ जाए।' 

'क्रोधित होने पर या अत्यधिक प्रसन्नता होने पर भी अपने पति का नाम न लें। पति के बुलाने पर सभी कामों को छोड़कर पति के पास चली जाएं। उसकी हर आज्ञा को अपना धर्म मानकर उसका पालन करे। कभी वह प्रवेश द्वार पर खड़ी न हो। बिना किसी कार्य के किसी के घर न जाए और जाने पर बिना कहे कदापि न बैठे। अपने घर की वस्तुएं किसी को न दे। पतिव्रता स्त्री को वस्त्रों और आभूषणों से विभूषित होकर ही अपना मुख पति को दिखाना चाहिए।' 

'जब पति घर से बाहर या परदेश गया हो तो उन दिनों में पतिव्रता स्त्री को सजना संवरना नहीं चाहिए। पति के सेवन की चीजें ठीक समय पर जब उसे आवश्यकता हो, तुरंत दे दे। अपना हर कार्य चतुराई और होशियारी से करे। अपने पति की हर आज्ञा का पालन करना ही पतिव्रता स्त्री का परम धर्म होता है। पति की आज्ञा लिए बिना पत्नी को कहीं भी नहीं जाना चाहिए, यहां तक कि तीर्थस्थान जैसे पुण्यस्थलों पर भी नहीं। पति के चरणों को धोकर उसको पीने से ही पत्नी का तीर्थ स्नान पूरा हो जाता है। पति द्वारा छोड़े गए जूठे भोजन को पत्नी को प्रसाद समझकर खाना चाहिए।'

'देवता, पितरों, अतिथियों या भिखारियों को भोजन का भाग देकर ही भोजन करना चाहिए। व्रत तथा उपवास रखने से पूर्व पति की आज्ञा अवश्य लें अन्यथा व्रत का पुण्य नहीं मिलता। किसी चीज को पाने के लिए अपने पति से झगड़ा कदापि न करें। सुख से आरामपूर्वक बैठे हुए या सोते समय पति को कभी भी न उठाएं। यदि पति किसी बात के कारण दुखी हो, धनहीन हो, बीमार हो या वृद्ध हो गया हो तो भी उसका परित्याग न करे। रजस्वला होने पर तीन दिन तक अपने पति के सामने न जाए। उसे अपना मुख न दिखाए। जब तक स्नान करके शुद्ध न हो जाए, तब तक पति से कोई बात न करे। शुद्ध होकर सर्वप्रथम अपने पति का ही दर्शन करे।'

उत्तम पतिव्रत का पालन करने वाली स्त्री को सुहाग का प्रतीक मानी जाने वाली वस्तुओं जैसे सिंदूर, हल्दी, रोली, काजल, चूड़ियां, मंगलसूत्र, पायल, बिछुए, नाक की लौंग, कान के कुंडलों को सदैव धारण करना चाहिए। जो स्त्रियां सुहाग की निशानी मानी जाने वाली इन वस्तुओं को हर वक्त धारण किए रहती हैं, उनके पति की आयु में वृद्धि होती है।' 

'पतिव्रता स्त्री को कभी भी छिनाल, कुलटा आदि भाग्यहीन स्त्रियों के साथ नहीं रहना चाहिए अर्थात उनसे मित्रता नहीं करनी चाहिए। पति से लड़ने वाली एवं उससे वैर भाव रखने वाली स्त्री को सहेली न बनाएं। कभी भी अकेली न रहें। वस्त्रहीन होकर स्नान न करें। सदा पति के कहे अनुसार चलें। पति की इच्छा होने पर ही रमण करें। उसकी हर इच्छा को ही अपनी इच्छा समझें। पति के हंसने पर हंसे और उसके दुखी होने पर दुखी हों।'

'पतिव्रता स्त्री के लिए उसका पति ही उसका आराध्य होना चाहिए। ब्रह्मा, विष्णु और शिव से अधिक उसे अपने पति को महत्व देना चाहिए। अपने पति को शिव स्वरूप मानकर उसे पूजना चाहिए। पति के साथ लड़ने वाली स्त्री कुतिया या सियारिन के रूप में जन्म लेती है। पति जिस स्थान पर बैठा हो, उससे ऊंचे स्थान पर न बैठे। किसी की भी निंदा न करे। सबसे मीठे वचन बोले। पति स्त्री के जीवन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है। इसलिए उसका सदैव पूजन करे। नारी को अपने पति को ही देवता, गुरु, धर्म, तीर्थ एवं व्रत समझकर उसकी आराधना करनी चाहिए।' 'पति से कभी दुर्वचन न कहे। सास, ससुर, जेठ, जिठानी, गुरुओं सहित सभी बड़ों का आदर करे। उनके सामने कभी ऊंचा न बोले और न हंसे। बाहर से पति के आने पर आदरपूर्वक उसके चरण धोए जो मूढ़ बुद्धि नारियां अपने पति को त्यागकर व्यभिचार करती हैं अथवा दुष्ट पुरुषों के सान्निध्य में रहती हैं वे उल्लू का जन्म लेती हैं। पति से हीन नारी सदा के लिए अपवित्र हो जाती है। तीर्थ स्नान करने पर भी वह अपवित्र रहती है। भले ही वह लोक दिखावे के लिए कितने ही उपवास, व्रत नियम करे फिर भी उसे मलिन ही समझना चाहिए।'  

'जिस घर में पतिव्रता नारी का वास होता है, उसके पति, पिता और माता तीनों के कुल तर जाते हैं। वे सीधे स्वर्गलोक की शोभा बढ़ाते हैं। इसके विपरीत जो स्त्रियां पर पुरुषों की ओर आकर्षित होकर अपने मार्ग से भटक जाती हैं वे अपने साथ-साथ अपने कुल का भी नाश करती हैं। ऐसी स्त्रियां परपुरुष के मोह में आकर न केवल अपने पति का अमंगल करती हैं वरन पति के सम्पूर्ण परिवार का भी विनाश कर देती हैं। पतिव्रता नारी के स्पर्श होने मात्र से ही वहां की भूमि पावन और पापों का नाश करने वाली हो जाती है। सूर्य, चंद्रमा तथा वायुदेव भी पवित्रता हेतु नारी का स्पर्श करते हैं, ताकि वे दूसरों को पवित्र कर सकें। पतिव्रता पत्नी ही गृहस्थ आश्रम की नींव है, सुखों का भंडार है, वही धर्म को पाने का एकमात्र मार्ग है तथा वही परिवार की वंश बेल को आगे बढ़ाने वाली है।'

'भगवान विश्वनाथ में अटूट भक्तिभाव रखने वाले शिव भक्तों को ही पतिव्रता नारियों की प्राप्ति होती है। पत्नी से ही पति का अस्तित्व होता है। एक-दूसरे के बिना दोनों का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता। पत्नी के बिना पति देवयज्ञ, पितृ यज्ञ और अतिथि यज्ञ आदि कोई भी यज्ञ अकेले संपन्न नहीं कर सकता। पतिव्रता नारियों को पवित्र पावनी गंगा के समान पवित्र माना जाता है। उसके दर्शनों से ही सबकुछ पवित्र हो जाता है। पति-पत्नी का संबंध अटूट है।' 

'पति प्रणव है और पत्नी वेद की ऋचा, एक तप है तो एक क्षमा, पत्नी द्वारा किए अच्छे कर्मों का फल है पति, हे गिरिजानंदिनी! शास्त्रों में पतिव्रता नारियों को चार प्रकार का बताया गया है उत्तमा, मध्यमा, निकृष्टा और अतिनिकृष्टा । ये पतिव्रता स्त्रियों के भेद हैं। जो स्त्रियां स्वप्न में भी सिर्फ अपने पति का ही स्मरण करती हैं, ऐसी स्त्रियां 'उत्तमा' पतिव्रता कहलाती हैं। जो स्त्रियां प्रत्येक पुरुष को पिता भाई एवं पुत्र के रूप में देखती हैं, वह 'मध्यमा' पतिव्रता कहलाती हैं। जिसके मन में धर्म और लोकलाज का भय रहता है और इस कारण वह सदैव धर्म का पालन करती है, वह 'निकृष्टा' पतिव्रता कहलाती हैं। जो स्त्री अपने पति से डरकर या कुल के बदनाम होने के डर से व्यभिचार से दूर रहती है वह स्त्री 'अतिनिकृष्टा' पतिव्रता कहलाती है।' 

ये चारों प्रकार की पतिव्रता स्त्रियां पावन, पवित्र और समस्त पापों का नाश करने वाली कही जाती हैं। मुनि अत्रि की पत्नी अनसूया ने अपने पतिव्रत के प्रभाव से त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और शिव को शिशु बना दिया था। यही नहीं उन्होंने मरे हुए एक ब्राह्मण को अपने सतीत्व के बल से जीवित कर दिया था।'

हे गिरिजानंदिनी! मैंने पतिव्रता स्त्री की सभी विशेषताएं और गुण तुम्हें बता दिए हैं। अब आप इसी के अनुरूप ही आचरण किया करें। अपने पति की हर आज्ञा को सर्वोपरि मानकर उसका पालन करें। पति को सुखी रखने से ही सभी मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। आप तो जगदंबा का रूप हैं और आपके पति तो साक्षात भगवान शिव हैं। आपको यह सब बताकर कोई लाभ नहीं, क्योंकि आप तो यह सब जानती ही हैं और इसका उत्तम पालन भी करेंगी। आपके विषय में तो सोचकर ही स्त्रियां पवित्र एवं पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली हो जाती हैं। इसलिए मुझे अधिक कुछ कहने की कोई आवश्यकता नहीं है। मुझे विश्वास है कि आप उत्तम पतिव्रत धर्म का पालन करके संसार की अन्य स्त्रियों के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करेंगी।'

ऐसा कहकर वह ब्राह्मण पत्नी चुप हो गई। उनसे पतिव्रत धर्म का उपदेश सुनकर देवी पार्वती ने बहुत हर्ष का अनुभव किया। उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर ब्राह्मण पत्नी को नमस्कार किया तथा उत्तम धर्म के विषय में ज्ञान देने के लिए उनका धन्यवाद दिया। देवी पार्वती ने अपने आचरण से सभी उपस्थित परिजनों को शिक्षा दी कि भले ही कोई कितना भी जानकार क्यों न हो, उसे अपनी परंपराओं का आदरपूर्वक पालन करना चाहिए। जो अहंकार के कारण लोकधर्म का परित्याग करता है, उसका अपयश होता है तथा वह अपनी संतानों को पथभ्रष्ट करता है।

इति श्रीमद् राम कथा रामायण माहात्म्य अध्याय का भाग-४९(49) समाप्त !

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