भाग-३३(33) शूर्पणखा तथा रावण आदि तीनों भाइयों का विवाह और मेघनाद का जन्म

 


अगस्त्यजी कहते हैं - श्रीराम! अपना अभिषेक हो जाने पर जब राक्षस राज दशग्रीव भाइयों सहित लङ्कापुरी में रहने लगा, तब उसे अपनी बहिन राक्षसी शूर्पणखा के ब्याह की चिन्ता हुई। उस राक्षस ने दानवराज विद्युतजिव्हा को, जो कालका का पुत्र था, अपनी बहिन शूर्पणखा ब्याह दी। श्रीराम! बहिन का ब्याह करके राक्षस दशग्रीव एक दिन स्वयं शिकार खेलने के लिये वन में घूम रहा था। वहाँ उसने दिति के पुत्र दानव शिल्पी मय को देखा। उसके साथ एक सुन्दरी कन्या भी थी। 

उसे देखकर निशाचर दशग्रीव ने पूछा - आप कौन हैं, जो मनुष्यों और पशुओं से रहित इस सूने वन में अकेले घूम रहे हैं? इस मृगनयनी कन्या के साथ आप यहाँ किस उद्देश्य से निवास करते हैं?

श्रीराम! इस प्रकार पूछनेवाले उस निशाचर से मय बोला – 'सुनो, मैं अपना सारा वृत्तान्त तुम्हें यथार्थ रूप से बता रहा हूँ। तात! तुमने पहले कभी सुना होगा, स्वर्ग में हेमा नाम से प्रसिद्ध एक अप्सरा रहती है। उसे देवताओं ने उसी प्रकार मुझे अर्पित कर दिया था, जैसे पुलोम दानव की कन्या शची देवराज इन्द्र को दी गयी थीं। मैं उसी में आसक्त होकर एक सहस्र वर्षों तक उसके साथ रहा हूँ। 

'एक दिन वह देवताओं के कार्य से स्वर्गलोक को चली गयी, तब से चौदह वर्ष बीत गये। मैंने उस हेमा के लिये माया से एक नगर का निर्माण किया था, जो सम्पूर्णत: सोने का बना है। हीरे और नीलम के संयोग से वह विचित्र शोभा धारण करता है। उसी में मैं अब तक उसके वियोग से अत्यन्त दुःखी एवं दीन होकर रहता था।' 

‘उसी नगर से इस कन्या को साथ लेकर मैं वन में आया हूँ। राजन् ! यह मेरी पुत्री है, जो हेमा के गर्भ में ही पली है और उससे उत्पन्न होकर मेरे द्वारा पालित हो बड़ी हुई है। इसके साथ मैं इसके योग्य पति की खोज करने के लिये आया हूँ। मान की अभिलाषा रखने वाले प्राय: सभी लोगों के लिये कन्या का पिता होना कष्टकारक होता है। क्योंकि इसके लिये कन्या के पिता को दूसरों के सामने झुकना पड़ता है। कन्या सदा दो कुलों को संशय में डाले रहती है।' 

‘तात! मेरी इस भार्या हेमा के गर्भ से दो पुत्र भी हुए हैं, जिनमें प्रथम पुत्र का नाम मायावी और दूसरे का दुन्दुभि है। 

तात! तुमने पूछा था, इसलिये मैंने इस तरह अपनी सारी बातें तुम्हें यथार्थ रूप से बता दीं। अब मैं यह जानना चाहता हूँ कि तुम कौन हो? यह मुझे किस तरह ज्ञात हो सकेगा?'

मयासुर के इस प्रकार कहने पर राक्षस दशानन विनीतभाव से यों बोला - मैं पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा का पुत्र हूँ। मेरा नाम दशानन है। मैं जिन विश्रवा मुनि से उत्पन्न हुआ हूँ, वे ब्रह्माजी से तीसरी पीढ़ी में पैदा हुए हैं। 

'श्रीराम ! राक्षसराज के ऐसा कहने पर दानव मय महर्षि विश्रवा के उस पुत्र का परिचय पाकर बहुत प्रसन्न हुआ और उसके साथ वहाँ उसने अपनी पुत्री का विवाह कर देने की इच्छा की।' 

इसके बाद दैत्यराज मय अपनी पुत्री का हाथ दशानन के हाथ में देकर हँसता हुआ उस राक्षसराज से इस प्रकार बोला – राजन्! यह मेरी पुत्री है, जिसे हेमा अप्सरा ने अपने गर्भ में धारण किया था। इसका नाम मन्दोदरी है। इसे तुम अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करो। 

'श्रीराम! तब दशानन ने 'बहुत अच्छा' कहकर मयासुर की बात मान ली। फिर वहाँ उसने अग्नि को प्रज्वलित करके मन्दोदरी का पाणिग्रहण किया। रघुनन्दन! यद्यपि तपोधन विश्रवा से दशानन को जो क्रूर - प्रकृति होने का शाप मिला था, उसे मयासुर जानता था; तथापि दशानन को ब्रह्माजी के कुल का बालक समझकर उसने उसको अपनी कन्या दे दी।' 

'साथ ही उत्कृष्ट तपस्या से प्राप्त हुई एक परम अद्भुत अमोघ वीरघातिनी शक्ति भी प्रदान की, जिसके द्वारा दशानन के पुत्र मेघनाद ने लक्ष्मण को मूर्छित किया था। इस प्रकार दारपरिग्रह (विवाह) करके प्रभावशाली लङ्केश्वर दशानन लङ्कापुरी में गया और अपने दोनों भाइयों के लिये भी दो भार्याएँ उनका विवाह कराकर ले आया।' 

'विरोचन कुमार बलि (प्रह्लाद के पौत्र) की दौहित्री को, जिसका नाम वज्रज्वाला था, दशानन ने कुम्भकर्ण की पत्नी बनाया।  गन्धर्वराज महात्मा शैलूष की कन्या सरमा को, जो धर्म के तत्त्व को जानने वाली थी, विभीषण ने अपनी पत्नी के रूप में प्राप्त किया। वह मानसरोवर के तट पर उत्पन्न हुई थी। जब उसका जन्म हुआ, उस समय वर्षा ऋतु का आगमन होने से मान- सरोवर बढ़ने लगा।' 

तब उस कन्या की माता ने पुत्री के स्नेह से करुण क्रन्दन करते हुए उस सरोवर से कहा - 'सरो मा वर्धयस्व' (हे सरोवर! तुम अपने जलको बढ़ने न दो)। उसने घबराहट में 'सर: मा' ऐसा कहा था; इसलिये उस कन्या का नाम सरमा हो गया। 

'इस प्रकार वे तीनों राक्षस विवाहित होकर अपनी-अपनी स्त्री को साथ ले नन्दनवन में विहार करने वाले गन्धर्वो के समान लङ्का में सुखपूर्वक रमण करने लगे। तदनन्तर कुछ काल के बाद मन्दोदरी ने अपने पुत्र मेघनाद को जन्म दिया, जिसे आप लोग इन्द्रजीत के नाम से पुकारते थे। पूर्वकाल में उस दशानन पुत्र ने पैदा होते ही रोते-रोते मेघ के समान गम्भीर नाद किया था।' 

'रघुनन्दन! उस मेघतुल्य नाद से सारी लङ्का जडवत् स्तब्ध रह गयी थी; इसलिये पिता दशानन ने स्वयं ही उसका नाम मेघनाद रखा। श्रीराम ! उस समय वहु दशानन कुमार दशानन के सुन्दर अन्त: पुर में माता- पिता को महान् हर्ष प्रदान करता हुआ श्रेष्ठ नारियों से सुरक्षित हो काष्ठ से आच्छादित हुई अग्नि के समान बढ़ने लगा। 

मेघनाद के जन्म के पश्चात मंदोदरी ने अक्षय कुमार को जन्म दिया जो दशानन का सबसे छोटा पुत्र था। दशानन की दूसरी पत्नी का नाम धन्यमालिनी था जो मंदोदरी की छोटी बहिन थी। धन्यमालिनी से दशानन को पांच पुत्र हुए अतिकाय, त्रिशरा, नरान्तक, देवान्तक और प्रहस्त। ये भी बड़े ही बलशाली और माया में निपुण योद्धा थे।   

कुंभकर्ण की तीन पत्नियाँ थीं, जिनसे उसे कुल तीन पुत्र हुए थे। उनकी पत्नियों के नाम वज्रज्वाला, कर्कटी और तडित्माला थे। वज्रज्वाला से कुंभ और निकुंभ नाम के दो पुत्र थे। कर्कटी से कुंभकर्ण को भीम नामक पुत्र हुआ था। तडित्माला से उत्पन्न पुत्र का नाम मूलकासुर था। विभीषण ने एक ही विवाह किया था। सरमा से विभीषण को दो पुत्र तारण तथा नील और दो पुत्रियां सनन्दा तथा अनल्ता थे।     

इति श्रीमद् राम कथा रावण चरित्र अध्याय-३ का भाग-३३(33) समाप्त !

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