भाग-२१(21) ब्राह्मणों के शाप से प्रतापभानु के समस्त वंश का नाश होना तथा सूतजी द्वारा उनके अगले राक्षस वंश का वर्णन

 


ऋषियों ने पूछा - हे सूतजी ! कालकेतु राक्षस और कपटी मुनि के मिलान के बाद राजा प्रतापभानु के साथ उन्होंने क्या किया? क्या वे दोनों अपने षड़यंत्र में सफल हो पाये अथवा नहीं?   

सूतजी बोले - इस प्रकार तपस्वी राजा को खूब दिलासा देकर वह महामायावी और अत्यन्त क्रोधी राक्षस चला। उसने प्रतापभानु राजा को घोड़े सहित क्षणभर में घर पहुँचा दिया। राजा को रानी के पास सुलाकर घोड़े को अच्छी तरह से घुड़साल में बाँध दिया। फिर वह राजा के पुरोहित को उठा ले गया और माया से उसकी बुद्धि को भ्रम में डालकर उसे उसने पहाड़ की खोह में ला रखा। वह आप पुरोहित का रूप बनाकर उसकी सुंदर सेज पर जा लेटा। 

'राजा सबेरा होने से पहले ही जागा और अपना घर देखकर उसने बड़ा ही आश्चर्य माना। मन में मुनि की महिमा का अनुमान करके वह धीरे से उठा, जिसमें रानी न जान पावे। फिर उसी घोड़े पर चढ़कर वन को चला गया। नगर के किसी भी स्त्री-पुरुष ने नहीं जाना। दो पहर बीत जाने पर राजा आया। घर-घर उत्सव होने लगे और बधावा बजने लगा। जब राजा ने पुरोहित को देखा, तब वह अपने उसी कार्य का स्मरण कर उसे आश्चर्य से देखने लगा। राजा को तीन दिन युग के समान बीते। उसकी बुद्धि कपटी मुनि के चरणों में लगी रही। निश्चित समय जानकर पुरोहित बना हुआ राक्षस आया और राजा के साथ की हुई गुप्त सलाह के अनुसार उसने अपने सब विचार उसे समझाकर कह दिए।'

'संकेत के अनुसार गुरु को उस रूप में पहचानकर राजा प्रसन्न हुआ। भ्रमवश उसे चेत न रहा कि यह तापस मुनि है या कालकेतु राक्षस। उसने तुरंत एक लाख उत्तम ब्राह्मणों को कुटुम्ब सहित निमंत्रण दे दिया। पुरोहित ने छह रस और चार प्रकार के भोजन, जैसा कि वेदों में वर्णन है, बनाए। उसने मायामयी रसोई तैयार की और इतने व्यंजन बनाए, जिन्हें कोई गिन नहीं सकता।'

अनेक प्रकार के पशुओं का मांस पकाया और उसमें उस दुष्ट ने ब्राह्मणों का मांस मिला दिया। सब ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलाया और चरण धोकर आदर सहित बैठाया। ज्यों ही राजा परोसने लगा, उसी समय कालकेतु कृत (कालकेतु की माया द्वारा रचित) आकाशवाणी हुई- हे ब्राह्मणों! उठ-उठकर अपने घर जाओ, यह अन्न मत खाओ। इस के खाने में बड़ी हानि है। रसोई में ब्राह्मणों का मांस बना है। 

आकाशवाणी का विश्वास मानकर सब ब्राह्मण उठ खड़े हुए। राजा व्याकुल हो गया परन्तु, उसकी बुद्धि मोह में भूली हुई थी। होनहारवश उसके मुँह से एक बात भी न निकली। तब ब्राह्मण क्रोध सहित बोल उठे उन्होंने कुछ भी विचार नहीं किया - अरे मूर्ख राजा! तू जाकर परिवार सहित राक्षस हो। रे नीच क्षत्रिय! तूने तो परिवार सहित ब्राह्मणों को बुलाकर उन्हें नष्ट करना चाहा था, ईश्वर ने हमारे धर्म की रक्षा की। अब तू परिवार सहित नष्ट होगा। एक वर्ष के भीतर तेरा नाश हो जाएगा, तेरे कुल में कोई पानी देने वाला तक न रहेगा। 

शाप सुनकर राजा भय के मारे अत्यन्त व्याकुल हो गया। फिर सुंदर आकाशवाणी हुई - हे ब्राह्मणों! तुमने विचार कर शाप नहीं दिया। राजा ने कुछ भी अपराध नहीं किया। आकाशवाणी सुनकर सब ब्राह्मण चकित हो गए। तब राजा वहाँ गया, जहाँ भोजन बना था। देखा तो वहाँ न भोजन था, न रसोइया ब्राह्मण ही था। तब राजा मन में अपार चिन्ता करता हुआ लौटा। उसने ब्राह्मणों को सब वृत्तान्त सुनाया और बड़ा ही भयभीत और व्याकुल होकर वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। 

'हे राजन! यद्यपि तुम्हारा दोष नहीं है, तो भी होनहार नहीं मिटता। ब्राह्मणों का शाप बहुत ही भयानक होता है, यह किसी तरह भी टाले टल नहीं सकता। ऐसा कहकर सब ब्राह्मण चले गए। नगरवासियों ने जब यह समाचार पाया, तो वे चिन्ता करने और विधाता को दोष देने लगे, जिसने हंस बनाते-बनाते कौआ कर दिया ऐसे पुण्यात्मा राजा को देवता बनाना चाहिए था, सो राक्षस बना दिया।'

'पुरोहित को उसके घर पहुँचाकर असुर कालकेतु ने कपटी तपस्वी को सूचना दी। उस दुष्ट ने जहाँ-तहाँ पत्र भेजे, जिससे सब बैरी राजा सेना सजा-सजाकर चढ़ दौड़े और उन्होंने डंका बजाकर नगर को घेर लिया। नित्य प्रति अनेक प्रकार से लड़ाई होने लगी। प्रताप भानु के सब योद्धा शूरवीरों की करनी करके रण में जूझ मरे। राजा भी भाई सहित खेत रहा। सत्यकेतु के कुल में कोई नहीं बचा। ब्राह्मणों का शाप झूठा कैसे हो सकता था। शत्रु को जीतकर नगर को फिर से बसाकर सब राजा विजय और यश पाकर अपने-अपने नगर को चले गए।'

सूतजी कहते हैं - हे ऋषियों ! सुनो, विधाता जब जिसके विपरीत होते हैं, तब उसके लिए धूल सुमेरु पर्वत के समान भारी और कुचल डालने वाली, पिता यम के समान कालरूप और रस्सी साँप के समान काट खाने वाली हो जाती है। समय पाकर वही राजा परिवार सहित रावण नामक राक्षस हुआ। उसके दस सिर और बीस भुजाएँ थीं और वह बड़ा ही प्रचण्ड शूरवीर था। अरिमर्दन नामक जो राजा का छोटा भाई था, वह बल का धाम कुम्भकर्ण हुआ। उसका जो मंत्री था, जिसका नाम धर्मरुचि था, वह रावण का छोटा भाई हुआ उसका विभीषण नाम था, जिसे सारा जगत जानता है। वह विष्णुभक्त और ज्ञान-विज्ञान का भंडार था और जो राजा के पुत्र और सेवक थे, वे सभी बड़े भयानक राक्षस हुए। 

'वे सब अनेकों जाति के, मनमाना रूप धारण करने वाले, दुष्ट, कुटिल, भयंकर, विवेकरहित, निर्दयी, हिंसक, पापी और संसार भर को दुःख देने वाले हुए, उनका वर्णन नहीं हो सकता। यद्यपि वे पुलस्त्य ऋषि के पवित्र, निर्मल और अनुपम कुल में उत्पन्न हुए, तथापि ब्राह्मणों के शाप के कारण वे सब पाप रूप हुए। 

इति श्रीमद् राम कथा रावण चरित्र अध्याय-३ का भाग-२१(21) समाप्त !

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