भाग-१९(19) हिमालय सहित सभी देवताओं का देवी जगदम्बिका के पास जाकर प्रार्थना करना


शौनक जी बोले -  हे महामते! आपने अपने श्रीमुख से मैना के पूर्व जन्म की कथा कही, जो कि अद्भुत व अलौकिक थी। मुनिश्रेष्ठ! अब आप हमें यह बताइए कि पार्वती जी मैना से कैसे उत्पन्न हुईं और उन्होंने त्रिलोकीनाथ भगवान शिव को किस प्रकार पति रूप में प्राप्त किया।

सूतजी बोले - हे शौनकजी! मैना और हिमवान के विवाह पर बहुत उत्सव मनाया गया। विवाह के पश्चात वे दोनों अपने घर पहुंचे। तब हिमालय और मैना सुखपूर्वक अपने घर में निवास करने लगे। तब श्रीहरि अन्य देवताओं को अपने साथ लेकर हिमालय के पास गए। सब देवताओं को अपने राजदरबार में आया देखकर हिमालय बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने सभी देवताओं को प्रणाम कर उनकी स्तुति की। वे भक्तिभाव से उनका आदर-सत्कार करने लगे। वे देवताओं की सेवा करके अपने को धन्य मान रहे थे। 

'मुने! हिमालय दोनों हाथ जोड़कर उनके सामने खड़े हो गए और बोले- भगवन्! आप सबको एक साथ अपने घर आया देखकर मैं प्रसन्न हूं। सच कहूं तो आज मेरा जीवन सफल हो गया है। आज मैं धन्य हो गया हूं। मेरा राज्य और मेरा पूरा कुल आपके दर्शन मात्र से ही धन्य हो गया। आज मेरा तप, ज्ञान और सभी कार्य सफल हो गए हैं।' 

'भगवन्! आप मुझे अपना सेवक समझें और मुझे आज्ञा दें कि मैं आपकी क्या सेवा करूं? मुझे बताइए कि मेरे योग्य क्या सेवा है? गिरिराज हिमालय के ये वचन सुनकर देवतागण प्रसन्नतापूर्वक बोले- हे हिमालय ! हे गिरिराज! देवी जगदंबा उमा ही प्रजापति दक्ष के यहां उनकी कन्या सती के रूप में प्रकट हुईं। घोर तपस्या करने के बाद उन्होंने शिवजी को पति रूप में प्राप्त किया, परंतु अपने पिता दक्ष के यज्ञ में वे अपने पति का अपमान सह न सकीं और उन्होंने योगाग्नि में अपना शरीर भस्म कर दिया। यह सारी कथा तो आप भी जानते ही हैं। अब देवी जगदंबा पुनः धरती पर अवतरित होकर शिवजी की अर्द्धांगिनी बनना चाहती हैं। हे हिमालय! हम सभी यह चाहते हैं कि देवी सती पुनः आपके घर में अवतरित हों।'

'श्रीविष्णु जी की यह बात सुनकर हिमालय बहुत प्रसन्न हुए और आदरपूर्वक बोले भगवन्! यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात है कि देवी मेरे घर-आंगन को पवित्र करने के लिए मेरी पुत्री के रूप में प्रकट होंगी। तब हिमालय अपनी पत्नी के साथ और देवताओं को लेकर देवी जगदंबा की शरण में गए। उन्होंने देवी का स्मरण किया और श्रद्धापूर्वक उनकी स्तुति करने लगे।'

देवता बोले - हे जगदंबे! हे उमे! हे शिवलोक में निवास करने वाली देवी। हे दुर्गे! हे महेश्वरी! हम सब आपको भक्तिपूर्वक नमस्कार करते हैं। आप परम कल्याणकारी हैं। आप पावन और शांतिस्वरूप आदिशक्ति हैं। आप ही परम ज्ञानमयी शिवप्रिया जगदंबा हैं। आप इस संसार में हर जगह व्याप्त हैं। सूर्य की तेजस्वी किरण आप ही हैं। आप ही अपने तेज से इस संसार को प्रकाशित करती हैं। आप ही जगत का पालन करती हैं। आप ही गायत्री, सावित्री और सरस्वती हैं। 

'आप धर्मस्वरूपा और वेदों की ज्ञाता हैं। आप ही प्यास और आप ही तृप्ति हैं। आपकी पुण्यभक्ति भक्तों को निर्मल आनंद प्रदान करती है। आप ही पुण्यात्माओं के घर में लक्ष्मी के रूप में और पापियों के घर में दरिद्रता और निर्धनता बनकर निवास करती हैं। आपके दर्शनों से शांति प्राप्त होती है। आप ही प्राणियों का पोषण करती हैं तथा पंचभूतों के सारतत्व से तत्वस्वरूपा हैं।' 

'आप ही नीति हैं और सामवेद की गति हैं। आप ही ऋग्वेद और अथर्वेद की गति हैं। आप ही मनुष्यों के नाक, कान, आंख, मुंह और हृदय में विराजमान होकर उनके घर में सुखों का विस्तार करती हैं। हे देवी जगदंबा ! इस संपूर्ण जगत के कल्याण एवं पालन के लिए हमारी पूजा स्वीकार करके आप हम पर प्रसन्न हों।'

'इस प्रकार जगज्जननी सती-साध्वी देवी जगदंबा उमा की अनेकों बार स्तुति करके सभी देवता उनके साक्षात दर्शनों के लिए दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो गए।'

सूतजी बोले - हे महर्षियों! देवताओं के द्वारा की गई स्तुति से प्रसन्न होकर दुखों का नाश करने वाली जगदंबा देवी दुर्गा उनके सामने प्रकट हो गईं। वे अपने दिव्य रत्नजड़ित रथ पर  बैठी हुई थीं। उनका मुख करोड़ों सूर्य के तेज के समान चमक रहा था। उनका गौर वर्ण दूध के समान उज्ज्वल था। 

'उनका रूप अतुल्य था। रूप में उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती थी। वे सभी गुणों से युक्त थीं। दुष्टों का संहार करने के कारण वे ही चण्डी कहलाती हैं। वे अपने भक्तों के सभी दुखों और पीड़ाओं का निवारण करती हैं। देवी जगदंबा पूरे संसार की माता हैं। वे ही प्रलयकाल में समस्त दुष्टों को उनके बंधु-बांधवों सहित घोर निद्रा में सुला देती हैं।' 

'वही देवी उमा इस संसार का उद्धार करती हैं। उनके मुखमण्डल का तेज अद्भुत है। इस तेज के कारण उनकी ओर देख पाना भी संभव नहीं है। तब उनके अमृत दर्शनों की इच्छा लेकर श्रीहरि सहित सभी ने स्तुति की और सभी ने उनके अमृतमय स्वरूप को देखा।'

उनके अद्भुत स्वरूप के दर्शनों से सभी देवता आनंदित होकर बोले- हे महादेवी! हे जगदंबा! हम आपके दास हैं। आपकी शरण में हम बहुत आशा से आए हैं। कृपा करके हमारे आने के उद्देश्य को समझकर हमारे मनोरथ को पूर्ण कीजिए। हे देवी! पहले आप प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में प्रकट होकर रुद्रदेव की पत्नी बनीं और ब्रह्माजी व अन्य देवताओं के दुखों को दूर किया। अपने पिता के यज्ञ में अपने पति का अपमान देखकर स्वेच्छा से अपने शरीर का त्याग कर दिया। 

'इससे रुद्रदेव बड़े दुखी हैं। वे अत्यंत शोकाकुल हो गए हैं। साथ ही आपके यहां चले आने से देवताओं की जो इच्छा थी वह भी अधूरी रह गई है। इसलिए हे जगदंबिके! आप पृथ्वीलोक पर पुनः अवतार लेकर रुद्रदेव को पति रूप में पाइए ताकि इस लोक का कल्याण हो सके और सनत्कुमार मुनि का कथन भी पूर्ण हो सके। हे भगवती! आप हम सब पर ऐसी ही कृपा करें ताकि हम सभी प्रसन्न हो जाएं तथा महादेव जी भी पुनः सुखी हो जाएं, क्योंकि आपसे वियोग होने के कारण वे अत्यंत दुखी हैं। कृपा करके हमारे सभी कष्टों और दुखों को दूर करें।'

'ऐसा कहकर सभी देवता पुनः भगवती की आराधना करने लगे । तत्पश्चात हाथ जोड़कर चुपचाप खड़े हो गए। तब उनकी अनन्य स्तुति से देवी उमा को बहुत प्रसन्नता हुई। तब देवी शिवजी का स्मरण करते हुए बोलीं- हे हरे! हे ब्रह्माजी ! तथा समस्त देवताओ और ऋषि-मुनियो! मैं तुम्हारी आराधना से बहुत प्रसन्न हूं।' 

'अब तुम सभी अपने-अपने निवास स्थानों पर जाओ और सुखपूर्वक वहां पर निवास करो। मैं निश्चय ही अवतार लेकर हिमालय मैना की पुत्री के रूप में प्रकट होऊंगी, क्योंकि मैं अच्छे से जानती हूं कि जब से मैंने दक्ष के यज्ञ की अग्नि में अपना शरीर त्यागा है तब से मेरे पति त्रिलोकीनाथ महादेव जी भी निरंतर कालाग्नि में जल रहे हैं।' 

'उन्हें हर समय मेरी ही चिंता रहती है। वे हर समय यह सोचते हैं कि उनके क्रोध के कारण ही मैं उनका अपमान देखकर वापिस नहीं आई और मैंने वहीं अपना शरीर त्याग दिया। यही कारण है कि उन्होंने अलौकिक वेश धारण कर लिया है और सदैव योग में ही लीन रहते हैं। अपनी प्राणप्रिया का वियोग वे सहन नहीं कर सके हैं। इसलिए उनकी भी यही इच्छा है कि मैं पुनः पृथ्वी पर अवतीर्ण हो जाऊं ताकि हमारा मिलन पुनः संभव हो सके। महादेव जी की इच्छा मेरे लिए सदैव सर्वोपरि है। अतः मैं अवश्य ही हिमालय-मैना की पुत्री के रूप में अवतार लूंगी।'

'इस प्रकार देवताओं को बहुत आश्वासन देकर देवी जगदंबा वहां से अंतर्धान हो गईं। तत्पश्चात श्रीहरि व अन्य देवताओं का मन प्रसन्नता और हर्ष से खिल उठा। वे उस स्थान को, जहां देवी ने दर्शन दिए थे, अनेकों बार नमस्कार कर अपने-अपने धाम को चले गए।'

इति श्रीमद् राम कथा रामायण माहात्म्य अध्याय का भाग-१९(19) समाप्त ! 

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