भाग-१६(16) ब्रह्माजी, श्री हरी तथा देवताओं का कैलाश पर जाकर महादेव से क्षमा याचना करना

 


शौनकजी ने कहा - हे महाप्राण! आप शिवतत्व का ज्ञान रखते हैं। आपने हम सब पर बड़ी कृपा की जो इस अमृतमयी कथा का श्रवण हमें कराया। हम आपका बहुत बहुत धन्यवाद करते  हैं। हे प्रभु! अब हमें यह बताइए कि जब वीरभद्र ने दक्ष के यज्ञ का विनाश कर दिया और उनका वध करके कैलाश पर्वत को चले गए तब क्या हुआ?

सूतजी बोले - हे मुनिश्रेष्ठ! जब भगवान शिव द्वारा भेजी गई उनकी विशाल सेना ने यज्ञ में उपस्थित सभी देवताओं और ऋषियों को पराजित कर दिया और उन्हें पीट-पीटकर वहां से भाग जाने को विवश कर दिया तो वे सभी वहां से भागकर ब्रह्माजी के पास गए। उन्होंने परमपिता को प्रणाम करके उनकी स्तुति की तथा वहां का सारा वृत्तांत उन्हें सुनाया। 

'तब अपने पुत्र दक्ष की ब्रह्माजी को  बहुत चिंता होने लगी और उनका हृदय पुत्र शोक के कारण व्यथित हो गया। तत्पश्चात उन्होंने श्रीहरि का स्मरण किया और अन्य देवताओं और ऋषि-मुनियों को साथ लेकर बैकुंठलोक गए। वहां उन्हें नमस्कार करके वे सभी उनकी भक्तिभाव से स्तुति करने लगे। तब ब्रह्माजी ने श्रीहरि से विनम्रता से प्रार्थना की कि भगवन् आप कुछ ऐसा करें, जिससे हम सभी का दुख कम हो जाए। देवेश्वर आप कुछ ऐसा करें, जिससे वह यज्ञ पूरा हो जाए तथा उसके यजमान दक्ष पुनः जीवित हो जाएं। अन्य सभी देवता और ऋषि-मुनि भी पूर्व की भांति सुखी हो जाएं।'

'ब्रह्मदेव के इस प्रकार निवेदन करने पर लक्ष्मीपति विष्णुजी, जो अपने मन में शिवजी का चिंतन कर रहे थे, प्रजापति ब्रह्मा और देवताओं को संबोधित करते हुए इस प्रकार बोले- कोई भी अपराध किसी भी स्थिति में कभी भी किसी के लिए भी मंगलकारी नहीं हो सकता । हे विधाता! सभी देवता, परमपिता परमेश्वर भगवान शिव के अपराधी हैं क्योंकि इन्होंने यज्ञ में शिवजी का भाग नहीं दिया। साथ ही वहां उनका अनादर भी किया। उनकी प्रिय पत्नी सती ने भी उनके अपमान के कारण ही अपनी देह का त्याग कर दिया। उनका वियोग होने के कारण भगवन् अत्यंत रुष्ट हो गए हैं।' 

'तुम सभी को शीघ्र ही उनके पास जाकर उनसे क्षमा मांगनी चाहिए। भगवान शिव के पैर पकड़कर उनकी स्तुति करके उन्हें प्रसन्न करो क्योंकि उनके कुपित होने से संपूर्ण जगत का विनाश हो सकता है। दक्ष ने शिवजी के लिए अपशब्द कहकर उनके हृदय को विदीर्ण कर दिया है। इसलिए उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा मांगो। उन्हें शांत करने का यही सर्वोत्तम उपाय है। वे भक्तवत्सल हैं। यदि आप लोग चाहें तो मैं भी आपके साथ चलकर उनसे क्षमा याचना करूंगा।'

ऐसा कहकर भगवान श्रीहरि, ब्रह्माजी और अन्य देवता एवं ऋषि-मुनि आदि कैलाश पर्वत की ओर चल दिए। वह पर्वत बहुत ही ऊंचा और विशाल है। उसके पास में ही शिवजी के परमभक्त कुबेर का निवास स्थल अलकापुरी है। अलकापुरी महा दिव्य एवं रमणीय है। वहां चारों ओर सुगंध फैली हुई थी। अनेक प्रकार के पेड़-पौधे शोभा पा रहे थे। उसी के बाहरी भाग में परम पावन नंदा और अलकनंदा नामक नदियां बहती हैं। इनका दर्शन करने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।

'वे सभी अलकापुरी से आगे उस विशाल वट वृक्ष के पास पहुंचे, जहां दिव्य योगियों द्वारा पूजित भगवान शिव विराजमान थे। वह वट वृक्ष १०० योजन ऊंचा था तथा उसकी अनेक शाखाएं ७५ योजन तक फैली हुई थीं। वह परम पावन तीर्थ स्थल है। यहां भगवान शिव अपनी योगाराधना करते हैं। उस वट वृक्ष के नीचे महादेव जी के चारों ओर उनके गण थे और यज्ञों के स्वामी कुबेर भी बैठे थे। तब उनके निकट पहुंचकर विष्णु आदि समस्त देवताओं ने अनेकों बार नमस्कार कर उनकी स्तुति की। उस समय शिवजी ने अपने शरीर पर भस्म लगा रखी थी और वे कुशासन पर बैठे थे और ज्ञान का उपदेश वहां उपस्थित गणों को दे रहे थे। उन्होंने अपना बायां पैर अपनी दायीं जांघ पर रखा था और बाएं हाथ को बाएं पैर पर रख रखा था। उनके दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला थी।'

'भगवान शिव के साक्षात रूप का दर्शन कर विष्णुजी और सभी देवताओं ने दोनों हाथ जोड़कर और अपने मस्तक को झुकाकर दयासागर परमेश्वर शिव से क्षमा याचना की और कहा कि हे प्रभु! आपकी कृपा के बिना हम नष्ट-भ्रष्ट हो गए हैं। अतः प्रभु आप हम सबकी रक्षा करें। भगवन्! हम आपकी शरण में आए हैं। हम पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखें। इस प्रकार सभी देवता व ऋषि-मुनि भगवान शिव का क्रोध कम करने और उनकी प्रसन्नता के लिए प्रार्थना करने लगे।'

इति श्रीमद् राम कथा रामायण माहात्म्य अध्याय का भाग-१६(16) समाप्त !

No comments:

Post a Comment

रामायण: एक परिचय

रामायण संस्कृत के रामायणम् का हिंदी रूपांतरण है जिसका शाब्दिक अर्थ है राम की जीवन यात्रा। रामायण और महाभारत दोनों सनातन संस्कृति के सबसे प्र...