भाग-११(11) शंखचूड़ के आतंक से भयभीत होकर देवताओं का भगवान् शिव के समक्ष रक्षा की याचना करना

 


शौनकजी बोले - हे परमज्ञानी सूतजी! जब संसार के सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड़ ने गंधर्व रीति से विवाह कर लिया, तब फिर क्या हुआ? उन दोनों ने क्या किया?

शौनकजी के इस प्रकार के प्रश्न सुनकर सूतजी बोले - हे महामुने! शंखचूड़ और देवी तुलसी ने ब्रह्माजी की आज्ञा से विवाह कर लिया और वह उसे अपने साथ लेकर अपने घर वापिस आ गया। जब दानवों को इस बात की सूचना मिली कि शंखचूड़ को ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त हुआ है तो वे सभी बहुत प्रसन्न हुए। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने स्वयं वहां आकर शंखचूड़ को ढेरों आशीर्वाद प्रदान किए। तत्पश्चात उन्होंने शंखचूड़ को असुरों का आधिपत्य देते हुए उसका राज्याभिषेक कराया। राजसिंहासन संभालने के पश्चात शंखचूड़ बहुत प्रसन्न था।   

तब शुक्राचार्य बोले - हे असुरराज! शंखचूड़ ! तुम निःसंदेह ही वीर और पराक्रमी हो। तुम्हें आज असुरों का राज्य सौंपकर मुझे बहुत हर्ष हो रहा है। अब इस राज्य का विस्तार करना और असुरों की रक्षा करने का दायित्व तुम्हारा है। मुझे तुम्हारी प्रतिभा पर पूरा विश्वास है।

'यह कहकर दैत्यगुरु शुक्राचार्य वहां से चले गए। उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर शंखचूड़ राज्य करने लगा। उसने अपने राज्य का विस्तार करने के उद्देश्य से अपनी विशाल सेना को इंद्रलोक पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। वह स्वयं भी उस युद्ध में जा खड़ा हुआ। असुरों और देवताओं में बड़ा भयानक युद्ध शुरू हो गया। देवताओं ने अनेक असुरों को मार गिराया, अनेकों को घायल कर दिया। यह देखकर असुर सेना विचलित होकर इधर-उधर भागने लगी। इसे देखकर असुरराज शंखचूड़ का क्रोध सातवें आसमान पर जा पहुंचा। अपनी पूरी शक्ति से युद्ध करते हुए उसने देव सेना को खदेड़ दिया।'

'दैत्यराज शंखचूड़ से डरकर देव सेना तितर-बितर हो गई और अपने प्राणों की रक्षा के लिए गुफाओं और कंदराओं में जाकर छुप गई। महाबली, वीर प्रतापी शंखचूड़ ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और स्वर्ग के सिंहासन पर विराजमान हो गया। सूर्य, अग्नि, चंद्रमा, कुबेर, यम, वायु आदि सभी देवता शंखचूड़ के अधीन हो गए। अनेक देवता शंखचूड़ के डर से भाग निकले। जो देवता वहां से भाग निकले थे वे अपने प्राणों की रक्षा के लिए इधर-उधर मारे-मारे फिर रहे थे। जब उन्हें यह समझ नहीं आया कि अब वे क्या करें और कहां जाएं, तब वे सब देवता मिलकर ऋषि-मुनियों को साथ लेकर ब्रह्माजी की शरण में गए।'

ब्रह्माजी के पास पहुंचकर देवताओं ने उन्हें प्रणाम कर उनकी स्तुति की। तत्पश्चात उन्होंने शंखचूड़ के आक्रमण और स्वर्ग पर उसके आधिपत्य के बारे में सबकुछ ब्रह्माजी को बता दिया। ब्रह्माजी ने आश्वासन देते हुए कहा - इस विषय में भगवान विष्णु ही हमें कोई सही मार्ग बता सकते हैं। अतः हम सभी को उनके पास चलना चाहिए। यह कहकर वे सब श्रीहरि से मिलने के लिए बैकुण्ठलोक को चल दिए ।

'बैकुण्ठलोक पहुंचकर देवराज इंद्र और ब्रह्माजी सहित सभी देवताओं ने लक्ष्मीपति विष्णुजी की स्तुति की और उन्हें सारी बातों से अवगत कराया।' 

देवताओं का दुख सुनकर विष्णुजी ने उन्हें ढाढ़स बंधाते हुए कहा - हे देवताओ! आप इस प्रकार दुखी न हों। मैं शंखचूड़ के बारे में सभी कुछ जानता हूं। पहले वह मेरा अनन्य भक्त था। इस बारे में हमें देवाधिदेव महादेव जी से विचार-विमर्श करना चाहिए क्योंकि वे ही इस समस्या का सही समाधान बता सकते हैं। यह कहकर वे ब्रह्माजी और अन्य देवताओं को अपने साथ लेकर शिवलोक की ओर चल दिए।

सूतजी बोले - हे शौनकजी ! इस प्रकार ब्रह्माजी और अन्य देवताओं को अपने साथ लेकर विष्णुजी भगवान शिव से मिलने के लिए शिवलोक पहुंचे। वहां शिवलोक में भगवान शिव के सभी गण उन्हें घेरकर खड़े हुए थे। भगवान शिव अपनी प्रिय देवी पार्वती के साथ सिंहासन पर बैठे हुए थे। भगवान शिव ने अपने शरीर पर भस्म धारण की हुई थी । उनके गले में रुद्राक्ष की माला थी । त्रिनेत्रधारी भगवान शिव-शंकर देवी पार्वती के साथ बैठे वहां अद्भुत शोभा पा रहे थे।

'उनका वह अद्भुत और दिव्य रूप देखकर भगवान विष्णु, ब्रह्माजी, देवराज इंद्र सहित अन्य सभी देवताओं को बहुत प्रसन्नता हुई। उन्होंने देवाधिदेव, कृपानिधान भगवान शिव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और भक्तिपूर्वक उनकी स्तुति करनी आरंभ कर दी।'

देवता बोले - हे करुणानिधान! हे भक्तवत्सल भगवान शिव ! आप सर्वेश्वर हैं। आप परम - ज्ञानी हैं। आप सबकुछ जानने वाले हैं। प्रभु! आपकी आज्ञा से ही इस संसार में हर कार्य होता है। आपकी आज्ञा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता। भगवन्! आप तो सबकुछ जानते हैं। हे भक्तवत्सल ! आप सदा ही अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उनकी सभी इच्छाओं को पूरा कर उनके अभीष्ट कार्यों को पूरा करते हैं। भगवन्! हम इस समय बड़े दुखी होकर अपने प्राणों की रक्षा के लिए आपकी शरण में आए हैं। 

'दानवराज दंभ के पुत्र शंखचूड़ ने बलपूर्वक हमारे राज्य पर अपना अधिकार कर लिया है। उसने अनेक देवताओं को अपना बंदी बना लिया है और देवसेना को घायल कर कइयों को मौत के घाट उतार दिया है। किसी तरह हम अपनी जान बचाकर वहां से भाग निकले हैं। भगवन्! आप अपने भक्तों के रक्षक हैं। हम आपकी शरण में आए हैं। आप हम दुखियों के दुखों को दूर कीजिए उस शंखचूड़ नामक दैत्य ने हमारा जीना कठिन कर दिया है। आप उसको दण्ड देकर हमें मुक्त कराइए और हमारा उद्धार कीजिए। यह कहकर सब देवता चुप होकर हाथ जोड़कर खड़े हो गए।'

हे महामुने! इस प्रकार देवताओं की करुण प्रार्थना और अनुनय विनय सुनकर त्रिलोकीनाथ भगवान शिव बोले - हे श्रीहरि ! हे ब्रह्माजी और अन्य सभी देवताओं! मैं दैत्यराज शंखचूड़ के विषय में सबकुछ जानता हूं। असुरराज शंखचूड़ भले ही देवताओं का शत्रु एवं प्रबल विरोधी हो गया हो परंतु वह अभी भी धार्मिक है और सच्चे हृदय से धर्म का पालन करता है परंतु फिर भी तुम लोग मेरे पास मेरी शरण में आए हो और शरणागत की रक्षा करना सभी का कर्तव्य है। इसलिए मैं तुम्हारी रक्षा करने का वचन देता हूं। तुम अपनी व्यर्थ की चिंताएं त्याग दो और प्रसन्न होकर अपने-अपने स्थान पर लौट जाओ। मैं निश्चय ही शंखचूड़ का संहार करके उसके द्वारा दिए गए कष्टों से तुम्हें मुक्ति दिलाकर तुम्हारा स्वर्ग का राज्य तुम्हें वापस दिलाऊंगा। 

'हे श्रीहरि आपका सुदामा नामक पार्षद इस समय दानव योनि में शंखचूड़ के रूप में सभी को दुख दे रहा है। इस समय वह देवताओं का प्रबल विरोधी और शत्रु है। देवताओं को उसने बहुत कष्ट दिया है। उनका राज्य छीनकर उन्हें बंदी बना लिया है। मैं आपके दुखों और कष्टों को समझता हूं। अब आपको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अतः सबकुछ भुला दो।' 

'तब उन्होंने ब्रह्माजी और श्रीहरि विष्णु को आदेश दिया कि वे वहां से जाकर अन्य देवताओं को समझाएं कि वे निश्चिंत हो जाएं। मैं उनकी इच्छा अवश्य पूरी करूंगा और उन्हें शंखचूड़ के भय से मुक्त कराऊंगा।'

भगवान शिव के ये अमृत वचन सुनकर ब्रह्माजी सहित श्रीहरि विष्णु को बहुत संतोष हुआ। तब वे उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम करने लगे। तत्पश्चात भगवान शिव से आज्ञा लेकर सभी प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने स्थान को चले गए।

इति श्रीमद् राम कथा रावण चरित्र अध्याय-३ का भाग-११(11) समाप्त !

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